Thursday, November 10, 2016

Junbishen 766



मुस्कुराहटें 
फकीर का ज़मीर

कम बख्त इक फ़कीर जो दफ्तर में आ घुसा,
बोला कि बेटा जीता रहे, लिख दे ख़त मेरा।
कागज़, कलम था हाथ में, बढ़ कर थमा दिया,
मैं ने भी कारे-खैर यह फ़ैसला किया।
कहने लगा कि जोरू को लिख दे मेरा सलाम,
लिख दे कि आज कल ज़रा ढीला है अपना काम।
माहे-रवाँ में लिख दे कि गर्दिश मेहरबां,
इस वजह सिर्फ़ साठ सौ रपया है कुल रवां।
अगले महीने काफी बचत की उम्मीद है,
हिंदू की है दीवाली, मुसलमां की ईद है।
मैं ने कहा ये लो, बुरे हल लिख दिया,
कहने लगा कि, "बेटा अब हो जाए कुछ भला"
यह सुन के सर फिरा तो तवाज़ुन1 बिगड़ गया,
मुंह से निकल गया कि तेरी --------------

१-संतुलन

*
فقیر کا ضمیر 

کمبخت ، اک فقیر کل دفتر میں آ گھسا 
بولا کہ بیٹا جیتا رہے ، لکھ دے خط مرا 
کاغزقلم مجھے، بسماجت تھما دیا 
میں نے نیے ثواب کا ، یہ قصد جو کیا 
کہنے لگا کہ جورو کو، لکھ دے مرا سلام 
لکھ دے کہ آج کل ذرا، ڈھیلا ہے اپنا کام 
ماہ رواں میں لکھ دے، کہ گردش ہے مہرباں 
اس وجہ صرف ساٹھ سو روپیہ ہیں کل رواں ٠ 
اگلے مہینے کافی بچت کی امید ہے 
ہندو کی دیوالی ہے ، مسلماں کی عید ہے ٠ 
میں نے کہا ، یہ لو کہ برے حال لکھ دیا 
کہنے لگا کہ بھیّہ جی! ہو جاۓ کچھ بھلا ٠ 
یہ سن کے سر پھرا ، تو توازن بگڑ گیا 
منہ سے نکل گیا کہ تیری - - - - - - ٠

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