Saturday, September 17, 2016

Junbishen 748



ग़ज़ल

जहाँ रुक गया हूँ वह मंजिल नहीं है ,
ये तन आगे बढ़ने के क़ाबिल नहीं है .

 नफ़ी लेके मुल्क ए अदम जा रहा हूँ ,
अजब मुस्बतें हैं कि हासिल नहीं हैं .

ज़ईफ़ी , नहीफ़ी , ग़रीबी , असीरी ,
सदा कर आना कोई क़ातिल नहीं है .

जो रूपोश वहशत, नफ़स चुन रही है,
वह ग़ालिब हैं मद्दे मुक़ाबिल नहीं हैं .

तेरे हुस्न की बे रुखी कह रही है ,
तेरे पास सब कुछ है, बस दिल नहीं है .

ये मुंकिर नई  रहगुज़र चाहता है ,
तुम्हारी क़तारों में शामिल नहीं है .

غزل 

جہاں رک گیا ہوں، وہ منزل نہیں ہے 
یہ تن آگے بڑھنے کے قابل نہیں ہے 

نفی لیکے ملک عدم جا رہا ہوں 
عجب مثبتیں ہیں کہ حاصل نہیں ہیں 

ضعیفی ، نحیفی ، غریبی ، اسیری 
صدا دے آنا، کوئی قاتل نہیں ہے ؟

جو روپوش وحشت ، نفس چن رہی ہے 
وہ غالب ہے، مد مقابل نہیں ہے 

ترے حسن کی، بے رکھی کہہ رہی ہے 
ترے پاس سب کچھ ہے ، بس دل نہیں ہے 

یہ منکر نئی رہگزر چاہتا ہے 
تمہاری قطاروں میں شامل نہیں ہے 


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