Wednesday, August 24, 2016

Junbishen 751



ग़ज़ल

आओ चलें बहार में, बैठे हैं में, बैठे हैं इंतज़ार में ,
रस्म ए कुहन इजाज़तें, डूबी हुई हैं ग़ार में .

माना कि आप हैं हसीं, माना जवान साल हैं ,
मैं भी खड़ा हूँ देर से, आ जाइए क़तार में ,

लिख्खे हुए वरक़ जो, छीटें ज़रा सी पड़ गईं ,
माने सभी बदल गए, देखिए चश्म ए यार में . 

उनको जिहद की दाद दो, जिनको खुदा ने सब दिया ,
उनके लिए खुदाई है, उनके ही अख्तियार में .

नेक अमल इबादतें, उज्र ओ जज़ा के वास्ते ,
अपने तईं वह कर चुका, बैठा है इंतज़ार में . 

सोने दे अब अना को तू, थक सी गईं हैं ये जुनैद,
राह फ़रार तू भी ले, ख़तरा है इक़्तेदार में .


غزل 

آؤ چلیں بہار میں ، بیٹھے ہیں انتظار میں 
رسم کہن اجازتیں ، ڈوبی ہی ہیں غار میں 

مانا کہ آپ ہیں حسیں ، مانا جوان سال ہیں 
میں بھی کھڑا ہوں دیر سے، آ جائیے قطار میں 

لکھکھے ہوئے ورق پہ جو ، چھیٹیں ذرا سی پڑ گیں 
معنی سبھی بدل گے ، دیکھئے چشم یار میں 

انکی جہد کی داد دو ، جنکو خدا نے سب دیا 
انکے لئے  خدائی ہے ، انکے ہی اختیار میں 

نیک عمل ، عبادتیں ، اجر و جزا کے واسطے 
اپنے تئیں وہ کر چکا ، بیٹھا ہے انتظار میں 

سونے دے اب انا کو تو ، تھک سی گئی ہیں یہ جنید 
راہ فرار تو بھی لے ، خطرہ ہے اقتدار میں 

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