Wednesday, August 17, 2016

Junbishen 748






ग़ज़ल

हर गाम रब के डर से सिहरने लगे हैं ये,
खुद अपनी बाज़ ए गश्त से डरने लगे हैं ये। 

गर्दानते हैं शोखी के लम्हात को गुनाह,
संजीदगी की घास को चरने लगे हैं ये। 

रूहानी पेशवा हैं कि खुद रूह के मरीज़,
पैदा नहीं हुए थे कि मरने लगे हैं ये. 

हैं इस लिए ख़फ़ा, मैं कभी नापता नहीं,
वह कार ए ख़ैर जिसको कि करने लगे हैं ये। 

खुद अपने जलवा गाह की पामालियों के बाद ,
हर आईने पे रुक के संवारने लगे हैं ये। 

मुंकिर ने फेंके टुकड़े ख़यालों के उनके गिर्द,
माक़ूलियत को पा के ठहेरने लगे हैं ये. 

غزل 

ہر گام رب کے ڈر سے، سہر نے لگے ہیں یہ  
خود اپنی باز گشت سے، ڈرنے لگے ہیں یہ

گردانتے ہیں، شوخی کے لمحات کو گناہ 
سنجیدگی کی گھاس کو، چرنے لگے ہیں یہ 

روحانی پیشوا ہیں، کہ خود روح کے مریض
پیدا نہیں ہوئے تھے، کہ مرنے لگے ہیں یہ 

ہیں اس لئے خفا ، میں کبھی ناپتا نہیں
وہ کار خیر جسکو کہ ، کرنے لگے ہیں یہ 

خود اپنے جلوہ گاہ کے ، پامالیوں کے بعد 
ہر آئینے پہ روک کے، سنورنے لگے ہیں یہ

منکر نے پھینکے ٹکرے، خیالوں کے ان کے گرد 
معقولیت کو پا کے ، ٹھہرنے لگے ہیں یہ 


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