Monday, June 20, 2016

Junbishen 804




ग़ज़ल

तारीकियों१ से पहले, सरे शाम चाहिए,
हर सुब्ह आगही से भरा, जाम चाहिए।

अब जशने हुर्रियत२ को फ़रामोश भी करो,
आजादी ऐ मुआश3 का पैग़ाम चाहिए।

आरी हथौडा छोड़ के, चाक़ू उठा लिया,
मेहनत कशों के हाथों को, कुछ काम चाहिए।

मैं भी दबाए बैठा था, मुद्दत से उसके ऐब,
उस को भी एक ज़िद थी, कि इलज़ाम चाहिये।

कानो में रूई डाल के, बैठा है वह अमीन,
कुछ शोर चाहिए, ज़रा कोहराम चाहिए।

जद्दो जेहाद में, जाने जवानी कहाँ गई,
"मुंकिर" को बाक़ियात में आराम चाहिए।

१- अधकार २ -स्वतंत्रता दिवस ३-जीविका

غزل 
تاریکیوں سے پہلے سرے شام چاہئے
ہر روز آگہی سے بھرا جام چاہئے ٠ 

اب جشن حرریت کو فراموش بھی کرو 
گھر بار اور معاش کا پیغام چاہئے٠ 

ہسیا ہتھوڑا چھوڑ کے چاقو اٹھا لئے 
محنت کشوں کے ہاتھ کو کچھ کام کہئے ٠ 

میں بھی دباۓ بیٹھا تھا مدّت سے ان کے عیب 
انکو بھی ایک ضد تھی کہ الزام چاہئے ٠ 

کانوں میں روئی ڈال کے سویا ہے وہ امین 
کچھ شور چاہئے، ذرا کہرام چاہئے ٠ 

جددو جہد میں جانے جوانی کہاں گئی
منکر کو باقیات میں آرام چاہئے ٠ 

No comments:

Post a Comment