Friday, June 24, 2016

जुन्बिशें 806



ग़ज़ल
उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं ,
हम पे पीरे ख़ुद नुमाँ, के असर आते नहीं।

है तग़य्युर जुर्म तुम, ये सबक पढ़ते रहो,
राह में अपने ये, ज़ेरो ज़बर आते नहीं।

है लताफत जिंस में, वह भला बचते हैं क्यूं,
यह ब्रहमचारी हैं क्या? गौर फ़रमाते नहीं।

आज दीवाना तो बस, इस लिए दीवाना है,
छेड़ने वाले उसे क्यूँ नज़र आते नहीं।

मेरे मुजरिम यूँ भुला बैठे हैं, अपने जुर्म को,
सामने आ जाते हैं, अब वह कतराते नहीं।

غزل 
ہم پہ پیر خود نماں کے اثر آتے نہیں .
انکی مٹھی میں کبھی میرے پر آتے نہیں 

ہے تغییر جرم ، تم یہ سبق پڑھتے رہو 
راہ میں اپنے یہ، زیر و زبر آتے نہیں 

ہے لطافت جنس میں ، وہ بھلا بچتے ہیں کیوں 
یہ برہمچاری ہیں کیا ؟ غور فرماتے نہیں 

آج دیوانہ تو بس، اس لئے دیوانہ ہے 
چھیڑنے والے اسے، کیوں نظر آتے نہیں

میرے مجرم یوں بھلا، بیٹھے ہیں اپنے جرم کو 


سامنے آ جاتے ہیں ، اب وہ کتراتے 
 نہیں 

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