Thursday, June 30, 2016

Junbishen 808

ग़ज़ल 

सुकूने क़ल्ब को, दिल की हसीं परी तो मिले,
तेरे शऊर को, इक हुस्ने दिलबरी तो मिले.

नफ़स नफ़स की बुख़ालत  को ख़त्म कर देंगे,
तेरे निज़ाम में, पाकीज़ा रहबरी तो मिले.

क़िनाअतें तेरी, तुझ को सुकूं भी देदेंगी,
कि तुझ को सब्र, बशकले क़लन्दरी तो मिले.

जेहाद अब नए मअनो को ले के आई है.
तुम्हें ''सवाब ओ ग़नीमत'' से, बे सरी तो मिले.

वहाँ पे ढूँढा तो, बेहतर न कोई बरतर था,
फ़रेब खुर्दाए एहसास ए बरतरी तो मिले.

तू एक रोज़ बदल सकता है ज़माने को,
ख़याल को तेरे 'मुंकिर" सुख़नवरी तो मिले.

*****

*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-

غزل 
سکون قلب کو دل کی حسین پری تو ملے
ترے شعور کو اک حسن دلبری تو ملے ٠ 

نفس نفس کی بخلعت کو ترک کر دینگے 
ترے نظام میں پاکیزہ رہبری تو ملے ٠

قناعتیں تری تجھکو سکوں بھی دیدیں گی 
کہ تجھ کو صبر بشکل قلندری تو ملے ٠

جہاد اب نیے معنوں کو لے کے آیا ہے 
تمہیں ثواب و غنیمت سے بے سری تو ملے ٠

وہاں پہ ڈھونڈھا تو ، بہتر نہ کوئی برتر تھا
فریب خوردہ ے احساس برتری تو ملے ٠

تو ایک روز بدل سکتا ہے زمانے کو 
خیال کو ترے منکر سخن وری تو ملے ٠
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Monday, June 27, 2016

Junbishen 807


ग़ज़ल 

कम ही जानें कम पहचानें, बस्ती के इंसानों को,
वक़्त मिले तो आओ जानें, जंगल के हैवानों को.

अश्के गराँ जब आँख में  आएँ, मत पोछें मत बहने दें,
घर में फैल के रहने दें, पल भर के मेहमानों को.

भगवन तेरे रूप हैं कितने, कितनी तेरी राहें हैं,
कैसा झूला झुला रहा है, लोगों के अनुमानों को.

मुर्दा बाद किए रहती हैं, धर्म ओ मज़ाहिब की जंगें,
क़ब्रस्तनों की बस्ती को, मरघट के शमशानों को.

सेहरा के शैतान को कंकड़, मारने वाले हाजी जी!
इक लुटिया भर जल भी चढा, दो वादी हे भगवानो को.

बंदिश हम पर ख़त्म हुई है, हम बंदिश पर ख़त्म हुए,
"मुंकिर" कफ़न की गाठें खोलो, रिहा करो बे जानो को.
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غزل
کم ہی جانیں ، کم پہچانے ، بستی کے انسانوں کو
وقت ملے  تو آؤ سمجھیں ، جنگل کے حیوانوں کو ٠ 

اشک گراں جب آنکھ میں آئیں ، مت پوچھو، مت بہنے دو 
گھر میں پھیل کے رہنے دیں ، پل بھر کے مہمانوں کو ٠ 

بھگون تیرے روپ ہیں کتنے ، کتنی تیری راہیں  ہیں
کیسا جھولا جھلا رہا ہے ، لوگوں کے انومنوں کو ٠ 

کیوں آباد کئے رہتی ہیں ، دھرم و مذاہب کی جنگیں
قبرستانوں کی بستی کو ،مرگھٹ کے شمشانوں ٠ 

سہرا کے شیطان کو کنکڑ، مار کے زخمی کر آے ؟
اک لٹیا بھر جل بھی چڑھا دو ، وادی کے بھگوانوں کو ٠ 

بندش مجھ پر ختم ہوئی ہے ، میں بندش پر ختم ہوا 
لوگو! کفن کی گا ٹھیں کھولو ، رہا کرو بے جانوں  کو ٠ 

Friday, June 24, 2016

जुन्बिशें 806



ग़ज़ल
उन की मुट्ठी में कभी, मेरे पर आते नहीं ,
हम पे पीरे ख़ुद नुमाँ, के असर आते नहीं।

है तग़य्युर जुर्म तुम, ये सबक पढ़ते रहो,
राह में अपने ये, ज़ेरो ज़बर आते नहीं।

है लताफत जिंस में, वह भला बचते हैं क्यूं,
यह ब्रहमचारी हैं क्या? गौर फ़रमाते नहीं।

आज दीवाना तो बस, इस लिए दीवाना है,
छेड़ने वाले उसे क्यूँ नज़र आते नहीं।

मेरे मुजरिम यूँ भुला बैठे हैं, अपने जुर्म को,
सामने आ जाते हैं, अब वह कतराते नहीं।

غزل 
ہم پہ پیر خود نماں کے اثر آتے نہیں .
انکی مٹھی میں کبھی میرے پر آتے نہیں 

ہے تغییر جرم ، تم یہ سبق پڑھتے رہو 
راہ میں اپنے یہ، زیر و زبر آتے نہیں 

ہے لطافت جنس میں ، وہ بھلا بچتے ہیں کیوں 
یہ برہمچاری ہیں کیا ؟ غور فرماتے نہیں 

آج دیوانہ تو بس، اس لئے دیوانہ ہے 
چھیڑنے والے اسے، کیوں نظر آتے نہیں

میرے مجرم یوں بھلا، بیٹھے ہیں اپنے جرم کو 


سامنے آ جاتے ہیں ، اب وہ کتراتے 
 نہیں 

Wednesday, June 22, 2016

Junbishen 805



ग़ज़ल

बडी कोताहियाँ जी लीं, बड़ी आसानियाँ जी लीं,
कि अब जीना है फ़ितरत को, बहुत नादानियाँ जी लीं.


तलाशे हक़ में रह कर, अपनी हस्ती में न कुछ पाया,
कि आ अब अंजुमन आरा!, बहुत तन्हाईयाँ जी लीं.

जवानी ख्वाब में बीती, ज़ईफ़ी सर पे आ बैठी,
हक़ीक़त कुछ नहीं यारो, कि बस परछाइयाँ जी लीं.

मेरी हर साँस, मेरे हाफ्ज़े से, मुन्क़ते कर दो,
कि बस उतनी ही रहने दो, कि जो रानाइयाँ जी लीं.

जो घर में प्यार के काबिल नहीं, तो दर गुज़र घर हो,
बहुत ही सर कशी झेलीं, बहुत ही ख़ामियाँ जी लीं.

तआकुब क्या, तजाऊज़, कुछ ख़ताएँ कर रहीं 'मुंकिर',
इन्हें रोको कि कफ़्फ़ारे  की, हमने सख्तियाँ जी लीं.

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*फितरत=प्रक्रिति *हक=खुदा * हाफ्ज़े=स्मरण *मुन्क़ते=विच्छिन 
*तआकुब=पीछा करना *तजाऊज़=उल्लंघन *कफ्फारे=प्राश्यचित


غزل

بڑی کوتاہیاں جی لیں ، بڑی آسانیاں جی لیں 
کہ اب جینا ہے فطرت کو ، بڑی نا دانیاں جی لیں ٠

تلاش حق میں رہکر اپنی ہستی میں نہ کچھ پایا
کہ آ اب انجمن آرا ،بہت تنہائیاں جی لیں ٠

جوانی خواب میں بیتی ، ضعیفی سر پہ بیٹھی ہے
حقیقت کچھ نہیں یارو، کہ بس پرچھا ییاں جی لیں ٠

میری ہر سانس میرے حافظے سے منقطع کر دو 
بچی اتنی ہی رہنے دو کہ جو رعنائیاں جی لیں ٠

جو گھر میں پیار کے قابل نہیں تو چھوڑ دو گھر کو
بہت سی سرکشی جھیلی ،بہت سی خامیاں جی لیں ٠

تعاقب کیا ، تجاوز کر گئیں ہیں کچھ خطا میری
انہیں روکو کہ کفّارے کی، ہم نے سختیاں جی لیں ٠ 

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Monday, June 20, 2016

Junbishen 804




ग़ज़ल

तारीकियों१ से पहले, सरे शाम चाहिए,
हर सुब्ह आगही से भरा, जाम चाहिए।

अब जशने हुर्रियत२ को फ़रामोश भी करो,
आजादी ऐ मुआश3 का पैग़ाम चाहिए।

आरी हथौडा छोड़ के, चाक़ू उठा लिया,
मेहनत कशों के हाथों को, कुछ काम चाहिए।

मैं भी दबाए बैठा था, मुद्दत से उसके ऐब,
उस को भी एक ज़िद थी, कि इलज़ाम चाहिये।

कानो में रूई डाल के, बैठा है वह अमीन,
कुछ शोर चाहिए, ज़रा कोहराम चाहिए।

जद्दो जेहाद में, जाने जवानी कहाँ गई,
"मुंकिर" को बाक़ियात में आराम चाहिए।

१- अधकार २ -स्वतंत्रता दिवस ३-जीविका

غزل 
تاریکیوں سے پہلے سرے شام چاہئے
ہر روز آگہی سے بھرا جام چاہئے ٠ 

اب جشن حرریت کو فراموش بھی کرو 
گھر بار اور معاش کا پیغام چاہئے٠ 

ہسیا ہتھوڑا چھوڑ کے چاقو اٹھا لئے 
محنت کشوں کے ہاتھ کو کچھ کام کہئے ٠ 

میں بھی دباۓ بیٹھا تھا مدّت سے ان کے عیب 
انکو بھی ایک ضد تھی کہ الزام چاہئے ٠ 

کانوں میں روئی ڈال کے سویا ہے وہ امین 
کچھ شور چاہئے، ذرا کہرام چاہئے ٠ 

جددو جہد میں جانے جوانی کہاں گئی
منکر کو باقیات میں آرام چاہئے ٠ 

Friday, June 17, 2016

Junbishen 803



 ग़ज़ल

ज़मीं पे माना, है ख़ाना ख़राब1 का पहलू,
मगर है अर्श पे, रौशन शराब का पहलू ।

ज़रा सा गौर से देखो, मेरी बग़ावत को,
छिपा हुआ है, किसी इन्क़ेलाब का पहलू।

नज़र झुकाने की, मोहलत तो देदे आईना,
सवाल दाबे हुए है,जवाब का पहलू।

पड़ी गिज़ा  ही, बहुत थी मेरी बक़ा के लिए,
बहुत अहेम है मगर, मुझ पे आब का पहलू।

ख़ता ज़रा सी है, लेकिन सज़ा है फ़ौलादी,
लिहाज़ में हो खुदाया, शबाब का पहलू।

खुली जो आँख तो देखा, निदा2 में हुज्जत थी,
सदाए गैब में पाया, हुबाब3 का पहलू।

तुम्हारे माजी में, मुखिया था कोई, गारों में,
अभी भी थामे हो उसके निसाब4 का पहलू।

बड़ी ही ज़्यादती की है, तेरी खुदाई ने,
तुझे भी काश हो लाज़िम हिसाब का पहलू।

ज़बान खोल न पाएँगे, आबले दिल के,
बहुत ही गहरा दबा है, इताब5 का पहलू।

सबक़ लिए है वह, बोसीदा दर्स गाहों के ,
जहाने नव को सिखाए, सवाब का पहलू।

तुम्हारे घर में फटे बम, तो तुम को याद आया,
अमान ओ अम्न पर लिक्खे, किताब का पहलू।

उधम मचाए हैं 'मुंकिर' वह दीन ओ मज़हब के ,
जुनूँ को चाहिए अब सद्दे बाब6 का पहलू..

1-  बर्बादी 2-ईश वाणी 3- बुलबुले 4- Cource 5- सज़ा 6- समाप्त  

غزل 
زمیں پہ مانا ہے ، خانہ خراب کا پہلو 
مگر ہے عرش پر ، روشن شراب کا پہلو ٠ 

ذرہ سا غور سے دیکھو، میری بغاوت کو 
چھپا ہوا ہے کسی انقلاب کا پہلو ٠ 

نظر جھکانے کی مہلت تو دے دے آئینہ 
سوال دبے ہوئے ہے ، جواب کا پہلو ٠

پڑی غذا ہی بہت تھی ، میری بقا کے لئے 
بہت اہم ہے مگر، مجھ پہ آب کا پہلو ٠

خطا ذرہ سی ہے ، لیکن سزا ہے فولادی 
لحاظ میں ہو خدا یا ، شباب کا پہلو ٠

کھلی جو آنکھ تودیکھا ، ندا میں حججت تھی
صداے غیب میں دیکھا حباب کا پہلو ٠

تمہارے ماضی کا مکھیہ کوئی تھا، غاروں میں
ابھی بھی تھامے ہو ، اسکے نصاب کا پہلو ٠ 

بڑی ہی زیادتی کی ہے، تری خدائی نے 
تجھے بھی کاش ہولازم ، حساب حساب کا پہلو ٠ 

زناں کو کھول نہ پاینگے آبلے دل کے 
بہت ہی گہرا دبا ہے ، عتاب کا پہلو ٠ 

سبق لئے ہے وہ، بوسیدہ درس گاہوں کے 
جہان نو کو سکھاۓ ثواب کا پہلو ٠ 

تمہارے گھر میں پھٹے بم تو تمہیں یاد آیا 
امان امن پر لکھکھے کتاب کا پہلو ٠ ٠ 

ادھم مچاۓ ہیں منکر ، وہ دھرم مذہب کے 
جنوں کو چاہئے اب صد باب کا پہلو ٠ 

Wednesday, June 15, 2016

Junbishen 802



क़तआत                                                      قطعات

बार ए ज़मीं 

हाथों में हैं दुआओं के कंगन जड़े हुए ,
ये फावड़े कुदाल हैं , बेजाँ पड़े हुए ,
क़हहारी और रहीमी की बेडी है पाँव में ,
दिल में हैं खौफ़ ओ ऐश के शैतां खड़े हुए .

زمیں کے بوج

ھہاتھوں میں ہیں دعا وں کے کنگن جڑے ہوئے 
یہ پھاوڑے کدل ہیں ، بے جاں پڑے ہوئے 
قہہاری اور رحیمی کی ، بیڑی ہے پانو میں 
دل میں ہیں خوف و عیش کے ، شیطاں کھڑے ہوئے ٠ 


मौत के राग 

तबलीग है कि मौत को हर वक़्त याद कर ,
मैं कहता हूँ कि मौत की कोई ख़बर न रख ,
इक लम्हा मौत का है , मुसलसल है जिंदगी ,
हर रोज़ खुद सरी हो, तो हर रोज़ बे सरी .

زندگی بنام موت

تبلیغ ہے کہ موت کو ہر وقت یاد کر ،
میں کہتا ہوں کہ موت کی ،  کوئی نہ ہو خبر،
اک لمحہ موت کا ہے ، مسلسل ہے زندگی ،
ہر روز خود سری ہو ، تو ہر شب ہو بے سری ٠ 


साँच की ताप 

कुछ अगर ख़ाहिश न हो, तो है अधूरी ज़िन्दगी ,
ख़ाहिशें अंधी हैं, गर हस्ती में हो नाख़ान्दगी ,
इल्म भी बेकार है , इन्सां अगर है बेअमल ,
सच नहीं मुंकिर तो है , इल्मो ओ हुनर शर्मिदगी .


حرارتیں

کچھ اگر خواہش نہ ہو تو ، ہے ادھوری زندگی 
خواہشیں اندھی ہیں ، گر ہستی میں ہے نہ خواندگی 
علم بھی بیکار ہے ، انسان اگر ہے بے عمل 
سچ نہیں 'منکر' ، تو ہے علم و ہنر شرمندگی ٠  

Monday, June 13, 2016

Junbishen 801


रुबाईयाँ                                                       رباعیاں 

सर को ठंडा, पैर गरम रख भाई, 
हो पीठ कड़ी, पेट नरम रख भाई, 
सच्चाई भरे अच्छे करम हों तेरे, 
ढोंगी न बन काँटे धरम रख भाई. 

سر کو ٹھنڈا ، پیر گرم رکھ بھائی 
ہو پیٹھ کڑی ، پیٹ نرم رکھ بھائی 
سچائی بھرے ، اچھے کرم رکھ بھائی 
ڈھونگی نہ ہو ، کانٹے کا دھرم رکھ بھائی ٠ 



किस धुन से बजाय था मजीरा देखो, 
छल बल से चुने मोती ओ हीरा देखो, 
बनिए की समाधि है, कि इबरत का मुक़ाम, 
इस कब्र का बे कैफ़ जज़ीरा देखो. 

کس دھن سے بجاۓ تھے مجیرہ دیکھو 
کس بل سے چنے ، موتی و ہیرا دیکھو 
بنئے کی سمدھی ہے کہ ، عبرت کا مقام 
اس قبر میں بے کیف ، جزیرہ دیکھو ٠ 



मातूब हुवा जाए बुढ़ापे में वजूद, 
लगत मिली बीवी से , न औलाद से सूद, 
संन्यास की ताक़त है, न अब भाए जुमूद, 
बूढ़े को सताए हैं, बचे हस्त ओ बूद. 

معتوب ہوا جاۓ ، بڑھاپے میں وجود 
لاگت ملی بیوی سے ، نہ اولاد سے سود 
سنیاس کی طاقت ہے ، نہ اب بھاۓ جمود 
بوڑھے کو رلاۓ ہے ، بچا ہست و بود ٠ 



हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो, 
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो, 
बे कुसूर, बे नयाज़ पर आंच न आए, 
आग के हवाले न कोई माल करो. 

ہاں ! جہادی طالبوں کو پامال کرو 
ان جنونیوں کا برا حل کرو 
بے قصوروں ، بے نیازوں پر آنچ نہ آئے 
آگ کے حوالے ، نہ کوئی مال کرو ٠ 

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Friday, June 10, 2016

Junbishen 800

नज़्म 

पैग़ाम ए नाहक़ 

कैसी सदा है दुन्या ये नापएदार है ,
फ़ानी तो हम सभी हैं, मगर ज़िंदगी केबाद ,
फ़रमान ए बुज़दिली है कि मरने से पहले मर .

इंसान में अजीब ये, मरने का खौफ़ है ,
वरना क़ज़ा ही उम्र ज़दा की नजात है ,
पचती नहीं किसी को, ये घुट्टी ज़वाल की .

किस कद्र फ़िक्र ख़ाम है, मरने का खौफ़ ये,
जब कि बहुत ही साफ़ है, तरतीब ए ज़िन्दगी ,
फलना शजर के बस में है, झरना है बेबसी .

यह उम्र चाहती है, उरूज ओ ज़वाल को ,
इंसान चाहता है, मुसलसल हयात हो ,
हिस्से में इसके एक बड़ी कायनात हो .
*
پیغام ناحق 

کیسی صدا ہے ؟ دنیا یہ ناپائیدار ہے 
فانی تو ہم سبھی ہیں ، مگر زندگی کے بعد 
فرمان بز دلی ہے کہ، مرنے سے پہلے مر 

انسان میں عجیب یہ مرنے کا خوف ہے 
ورنہ قضا ہی عمر زدہ کی نجات ہے 
پچتی نہیں کسی سے گھٹتی زوال کی  

کس قدر خوف خام ہے ، مرنے کا خوف یہ 
جب کہ بہت ہی صاف ہے، ترتیب زندگی 
پھلنا شجر کے بس میں ہے ، جھڑنا ہے بے بسی 

یہ امر چاہتی ہے عروج و زوال کو 
انسان چاہتا ہے ، مسلسل حیات ہو 
حصّے میں اس کے ایک بڑی کائنات ہو 

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Wednesday, June 8, 2016

Junbishen 799



वसीयत नामः 

मेरे बच्चो सही कहने की, मोहलत तुम नहीं लेना ,
ग़लत बातों में हाँ में हाँ की आदत तुम नहीं लेना .

जो मेहनत से मिले अमृत , जो मांगे से मिले पानी ,
जो छीना झपटी से आए , वह दौलत तुम नहीं लेना .

लक़ब तुमको ग़नी का मुफ़्त दे जाएँगे बे ग़ैरत ,
कभी भी मुफ़्त खोरों से ये शोहरत तुम नहीं लेना . 

जो सीधे सादे और अनपढ़ बुजुर्गों के मुकाबिल हों ,
ज़मीं पर फेंकना , ऐसी ज़ेहानत तुम नहीं लेना . 

छिपा है जो भी धरती में , अमानत है वो खिलक़त का ,
इसे लेकर ज़माने की अदावत तुम नहीं लेना . 

यतीमों की किफ़ालत में , उधर भी है तमअ की बू ,
इधर ग़ासिब का तुरका है , अमानत तुम नहीं लेना . 

पड़े मज़लूम को सर पे, उठा कर घर पे ले आना ,
किसी ज़ालिम के गोशे की, हिफ़ाज़त तुम नहीं लेना . 

बड़ा आलिम है वह मसूमयत को खो चुका होगा ,
वहां पर जा के कम अक़्लो , हिक़ारत तुम नहीं लेना . 

जरायम थे मेरे जायज़, मज़ालिम के ठिकानों पर ,
मुझे लड़ना है दोबारा , ज़मानत तुम नहीं लेना . 

नमाज़ें बख्शवाएंगी, गुनहगारों  को मह्शर में ,
गुनाहों से बचो मुंकिर , ये जन्नत तुम नहीं लेना .


وصیت نامہ 

میرے بچو صحیح کہنے کی ، مہلت تم نہیں لینا 
غلط باتوں میں ، "ہاں میں ہاں" کی عادت تم نہیں لینا ٠ 

جو محنت سے ملے نعمت ، جو مانگے سے ملے پانی 
جو چھینا جھپٹی سے آے ، وہ دولت تم نہیں لینا ٠ 
(کبیر)
لقب تم کو غنی کا مفت ، دے جاینگے بے غیرت 
کبھی بھی مفت خوروں سے ، یہ دولت تم نہیں لینا ٠ 

جو سیدھے سادے اور ان پڑھ ، بزرگوں کو کریں قائل 
زمیں پر پھینکنا ، ایسی ذہانت تم نہیں لینا ٠ 

چھپا ہے جو بھی دھرتی میں ، امانت وہ ہے خلقت کی 
اسے لیکر زمانے کی ، عداوت تم نہیں لینا٠ 

پڑے مظلوم کو سر پہ ، اٹھا کر گھر میں لے آنا 
کسی ظالم کے گوشے میں ، حفاظت تم نہیں لینا٠

جرا یم تھے میرے جائز ، مظالم کے ٹھکانوں پر
مجھے لڑنا ہے دوبارہ ، ضمانت تم نہیں لینا ٠ 

نمازیں بخشواینگی ، گنہگاروں کو محشر میں 
گناہوں سے بچو 'منکر' یہ جنّت تم نہیں لینا ٠ 

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Monday, June 6, 2016

Junbishen 798




नज़्म 
कारसेवा 

कार सेवा है कि गुरु द्वारे जा ,
झूटे बर्तन की सफ़ाई कर दे ,
फर्श गन्दा हो , लगा दे पोछा ,
काम को मांगे रसोई जाके ,
कार सेवा है इबादत से सिवा .

कार सेवा को हथौड़ों से किया,
बेलचे और कुदालों से किया ,
करके मिस्मार एक मस्जिद को ,
कार सेवा को गुनाहों से किय. 

कार सेवा है कि आँखें बरसें ,
नाम कुछ और इसे दे डालो ,
कार सेवा को यूँ रुसवा न करो,
कार सेवा है मुक़द्दस हरकत ,
कार सेवा है खुदाई खिदमत .

نظم 

کار سیوا 

کار سیوا ہے کہ گرو دوا ے جا 
جھوٹے برتن کی صفائی کر دے 
فرش گندا ہو ، لگا دے پوچھا 
کام کومانگے رسوئی جاکر 
ساگ سبزی کی کٹائی کردے 
ہو رہی ہو وہاں تعمیر اگر 
کام تو کر دے بنا اجرت کے 
کار سیوا ہے عبادت سے سوا ٠ 
*
کار سیوا جو ہتھوڑوں سے کیا 
بیلچے اور کدالوں سے کیا 
کرکے مسمار کسی مسجد کو 
کار سیوا کو گناہوں سے کیا ٠ 
کار سیوا ہے کہ دنگا بھڑکے  
کار سیوا ہے کہ آنکھیں برسیں 
نام کچھ اور اسے دے ڈالو 
کار سیوا کو یوں رسوا نہ کرو 
کار سیوا ہے مقدّس حرکت 
کار سیوا ہے خدائی خدمات ٠ 

Friday, June 3, 2016

JUNBISHEN 797

नज़्म 

क़र्ब ए तन्हाई 

तू भी चल उस सम्त, जिस पर ये ज़माना है रवां ,
वर्ना छुट जाएगा 'मुंकिर' तुझ से तेरा कारवां .

अपने धुन की बोझ लेकर, तनहा तू रह जाएगा ,
इन्किशाफ़ ऍ राज़ ऍ हस्ती किस पे तू झलकाएगा .

क्यों गुरेज़ाँ है जहाँ, खुद अपनी ही तकमील से ,
क्यों झुसस जाती है दुन्या, सच की इक क़िनदील से .

नव अज़ाँ  का सिलसिला, लेता है क्यों मुद्दत तवील ,
सौ सफ़र में रख के क्यों, आता है अगला संग ए मील .

ज़ेहन कैसे हम सफ़र हों , इरतेक़ाई चाल के ,
मुज़्तरिब फ़ितरत को हैं, हर लम्हा सौ सौ साल के. 

इंतज़ार इ वक़्त बन, वह दिन यक़ीनन आएगा ,
मज़हबों के इस जुनूँ से, आदमी थर्राएगा .


قرب تقنہائی 

تو بھی چل اس سمت ، جس پر یہ زمانہ ہے رواں 
ورنہ چھٹ جایگا 'منکر' ، تجھ سے تیرا کاروں  
اپنی دھن کا بوجھ لیکر ، تنہا تو رہ جاےگا 
انکشاف راز ہستی ، کس کو تو جھلکایگا ٠ 
کیوں گریزاں ہے جہاں ، خود اپنی ہی تکمیل سے  
کیوں جھلس جاتی ہے دنیا ، سچ کی اک کندیل سے  
نو اذان کا سلسلہ ، کیوں لیتا ہے مددت طویل  
سو سفر میں رکھ کے ، کیوں آتا ہے اگلا سنگ میل ٠ 
ذہن کیسے ہم سفر ہوں ، ارتقائی چال کے  
مضطرب فطرت کو، ہر لمحے ہیں سو سو سال کے  
انتظار وقت بن ، وہ دن یقیناً آ یگا ،
مذہبوں کے اس جنوں سے ، آدمی شرمایگا ٠ 

Wednesday, June 1, 2016

Junbishen 796



बड़ा सलाम

जिंदगी इतनी कीमती भी नहीं,
यार कि, जितना तुम समझते हो।
यह रवायत1 के नज़्र होती है,
आधी जगती है, आधी सोती है।
तन का ढकना, है पेट का भरना,
धर्म ओ मज़हब की घास को चरना।
यह कभी क़र्ब२ से गुज़रती है,
कभी काटे नहीं, ये कटती है।
इसका अपना कोई निशाना हो,
ज़िन्दगी जश्न हो, तराना हो।
इसको मौके पे, काम आने दो,
जंगे-हक़३ पर, महाज़४ पाने दो।
इसका अंजाम, बालातर५ आए,
आख़िरी वक़्त में निखर जाए।
सच एलान कर के मर जाओ,
आख़िरी वक़्त में संवर जाओ।
मियां 'मुंकिर'! ज़रा सा काम करो,
ज़िंदगी को बड़ा सलाम करो।

१-कही सुनी बातें २-पीडा ३-सच्ची लडाई ४-मोर्चा ५-श्रेष्ट

 برا سلام  

زندگی اتنی قیمتی بھی نہیں
یار کہ جتنا تم سمجھتے ہو
یہ روایت کے نذر ہوتی ہے
دن کو جگتی ہے رات سوتی ہے
تن کو ڈھکنا ہے ، پیٹ بھرنا ہے
دین دھرموں کی گھاس چرنا ہے
یہ سسکتے ہوئے گزرتی ہے
کبھی کاٹے نہیں یہ کاٹتی ہے ٠

 اسکا اپنا کوئی نشانہ ہو
زندگی جشن ہو ترانہ ہو
اسکو موقع پہ کام آنے دو
جنگ حق کا پیام پانے دو
اسکا انجام بالا تر آے
آخری وقت میں نکھر جاۓ
سچ کا اعلان کر کے مر جاؤ  
آخری وقت میں سنوار جاؤ 
میاں 'منکر' ذرا سا کام کرو
زندگی کو برا سلیم کرو ٠