Wednesday, April 20, 2016

Junbishen 779



नज़्म 
वजूद के औराक़ 

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
लाखों सालों का सफ़र है मेरा,
हादसों और वबाओं से बचाता खुद को ,
अरबों सालों की विरासत हूँ मैं।

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
जानते हो मुझे तुम लाल बुझक्कड़ की तरह,
नाप देते हो मुझे तुम कभी कुछ सालों में ,
तो कभी पाते हो कुछ सदियों की तारीख़ों में,
मेरे आग़ाज़ का पुतला बनाए फिरते हो,
कुंद ज़ेहनों से गढ़ा धरती का पहला इन्सां ,
जा बजा उसकी कहानी सुनाए रहते हो ,
मेरे माज़ी के वकीलान ओ गवाहान ए वजूद ,
तुमको लाहौल के शैतान नज़र आते हैं।

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
मेरे माज़ी में नहीं है, कहीं भी कुफ़्र कोई,
नक़्श फ़ितरत हूँ , सदा मुंकिर ओ इक़रारी हूँ,
लड़ते भिड़ते हों ख़ुदा जब तो खुला मुल्हिद हूँ,
दहरी गोदों का हूँ पर्वर्दा, दहरिया हूँ मैं।

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
मेरी तहजीब तो ज़ीने बज़ीने चढ़ती है , 
अपने बुन्याद के पत्थर का पास रखते हुए ,
वक़्त को रोज़ नए रूप का पैकर देकर,
आलम ओ बूद को कुछ नक़्श ए क़दम देती है।
मेरी तहज़ीब रवाँ रहती है आगे के लिए,
वादी में बस्ती हुई, पर्बतों पे चढ़ती हुई 
देवियाँ रचती हुई, देवता रचाती हुई ,
नित नई खोज नए इल्म ओ फ़न को पाती हुई ,
जनती रहती है अजंता, एलोरा, खजुराहो ,
मिस्र को क़ल्ब ए पिरामेड अता करती है,
रुक भी जाती है पडाओं पे कभी थक कर ये, 
जिसको कुछ लोग ये कहते हैं की मंजिल है यही,

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
रखने आते हैं सफ़र में मेरे अक्सर यूँ ही,
और आती है गुबारों की फ़िज़ा राहों में,
मैं ज़रा देर को रुक जाता हूँ,
उनकी गिरदान हुवा करती है उलटी गिनती,
वह तवाज़ुन को तहो बाला किया करते हैं ,
ज़ाया कर देते हैं बरसों की जमा पूँजी को ,
ज़ेर ए पा ज़ीने हटाते हैं, मेरे हासिल के ,
करते रहते हैं मुअल्लक़ मेरी मीनारों को,
बरसों लगते हैं मुझे फिर से सतह पाने में,

इर्तेका के मेरे औराक़ पढो ,
मेरी तक्मीली हकीक़त ये है - - -
" वादी मख़लूक़ की है और गुल ए इन्सां मैं हूँ ,
मेरे खुशबू को नज़रिए की ज़रुरत ही नहीं 
बनने वाला हूँ मुकम्मल इन्सां 
मेरी रंगत को नहीं चाहिए कोई मज़हब"

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نظم 

وجود کے اوراق 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠
لاکھوں سالوں کا سفر ہے میرا 
حادثوں اور وباؤں سے، بچاتا خود کو 
اربوں سالوں کی، وراثت ہوں میں 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠ 
ناپ دیتے ہو مجھے تم ، کبھی کچھ سالوں میں 
تو کبھی پاتے ہو صدیوں کی تواریخ میں تم 
مرے آغاز کا پتلا بھی بنایا تمنے  
کند ذہنو سے بناتے ہوئے پہلا انسان  
جا بجا اسکی کہانی بھی رچا کرتے ہو
میرے ماضی کے وکیلان و گواہان وجود 
تم کو لاحول کے شیطان نظر آتے ہیں ٠ 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠ 
میرے ماضی میں نہیں ہے ، کہیں بھی کفر کوئی 
نقش فطرت ہوں ، صدا منکر و اقراری ہوں 
لڑتے بھڑتے ہوں خدا جب تو کھلا ملحد ہوں 
دہری گودوں کا ہوں پروردہ ، دہریہ ہوں میں٠ 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠ 
مری تہذیب تو سینہ بسینہ چلتی ہے 
اپنے بنیاد کے پتھر سے گلے ملتی ہوئی 
وقت کو روز نئے روپ کا پیکر دیکر 
عالم رقص میں کچھ نقش قدم دیتی ہے 
میری تہذیب رواں رہتی ہے آگے کے لئے 
گھاٹی میں بستی ہوئی ، پربتوں کو چڑھتی ہوئی 
جنتی رہتی ہے- - - اجنتا ، الورا ، کھجرا ہو 
مصر کے قلب ، پرامیٹ عطا کرتی ہے 
دیوتا رچتی ہوئی ، دیویاں رچاتی ہوئی 
نت نئی دھن ، نئے علم و فن گاتی ہے 
رک بھی جاتی ہے ، پڑاؤ پہ کبھی سستاتی 
جس کو کچھ لوگ سمجھتے ہیں کہ منزل ہے یہی ٠ 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠ 
رخنے آتے ہے سفر میں مرے اکثر یوں ہی 
اور آتی ہے غباروں کی فضا راہوں میں 
میں ذرا دیر کو رک جاتا ہوں  
انکی گردان ہوا کرتی ہے الٹی گنتی
وہ توازن کو تہ و بلا کیا کرتے ہیں 
ضایع کرتے ہیں وہ برسوں کی جمع پونجی کو 
زیر پا زینے ہٹا دیتے ہیں
کرتے رہتے ہیں معلّق مری میناروں کو 
برسوں لگتے ہیں مجھے پھر سے سطح پانے میں 

ارتقا زکے مرے اوراق پڑھو ٠ 

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