Wednesday, February 3, 2016

Junbishen746

नज़्म

पतझड़ के पात

हूँ मुअल्लक़1 इन्तेहा-ओ-ख़त्म शुद2 के दरमियाँ।
ऐ जवानी! अलविदा!! अब आएगी दिल पर खिज़ाँ3।

ज़ेहन अब बहके गा जैसे पहले बहके थे क़दम,
कूए-जाना4 का मुसाफिर जायगा अब आश्रम।

यह वहां पाजाएगा टूटा हुवा कोई गुरू,
ज़ख्म खुर्दा5 मंडली होगी, यह होगा फिर शुरू।

धर्मो-मज़हब की किताबें फिर से यह दोहराएगा,
नव जवानो को ब्रम्ह्चर और फिकः6 समझाएगा।

फिर यह चाहेगा कोई पहचान बन जाए मेरी,
दाढ़ी,चोटी,और जटा ही शान बन जाए मेरी।

फिर ये अपना बुत तराशेगा गुरू बन जाएगा,
ये समझता है ब़का7 में आबरू बन जाएगा।

१-बीचअटका हुवा २-इतिऔर समाप्ति ३-प्रेमिका की गली ५-घायल ६-धर्म-शास्त्र ७-शेष .

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