Sunday, December 20, 2015

Junbishen 727



 ग़ज़ल
आज़माने की बात करते हो,
दिल दुखाने की बात करते हो।

उसके फ़रमान में, सभी हल हैं,
किस फ़साने की बात करते हो।

मुझको फुर्सत मिली है रूठों से,
तुम मनाने की बात करते हो।

ऐसी मैली कुचैली गंगा में,
तुम नहाने की बात करते हो।

मेरी तक़दीर का लिखा सब है,
मार खाने की बात करते हो।

झुर्रियां हैं जहाँ कुंवारों पर ,
उस घराने की बात करते हो।

हाथ 'मुंकिर' दुआ में फैलाएं,
क़द घटाने की बात करते हो।

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