Friday, December 4, 2015

Junbishen 721



 ग़ज़ल
गर एतदाल हो, तो चलो गुफ्तुगू करें,
तामीर रुक गई है, इसे फिर शुरू करें.

इन कैचियों को फेकें, उठा लाएं सूईयाँ,
इस चाक दामनी को, चलो फिर रफ़ु करें।

इक हाथ हो गले में, तो दूजे दुआओं में,
आओ कि दोस्ती को, कुछ ऐसे रुजू करें।

खेती हो पुर खुलूस, मुहब्बत के बीज हों,
फ़सले बहार आएगी, हस्ती लहू करें।

रोज़ाना के अमल ही, हमारी नमाजें हों,
सजदा सदक़तों पे, सहीह पर रुकु करें।

ए रब कभी मोहल्ले के बच्चों से आ के खेल,
क़हर ओ ग़ज़ब को छोड़, तो "मुंकिर"वजू करें.


*एतदाल=संतुलन *तामीर=रचना *पुर खुलूस=सप्रेम *रुकु=नमाज़ में झुकना *वजू=नमाज़ कि तय्यारी को हाथ मुंह धोना

(क़ाफ़ियाओं में हिंदी अल्फ़ाज़ मुआज़रत के साथ )

1 comment:

  1. Actually I landed here accidently but now I think your poems are really valuable to todays hectic world. सरकारी नौकरी

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