Saturday, November 21, 2015

Junbishen 716




ज़ीने बज़ीने 
जो छोड़ के बरेली को पहुँचे हैं देवबंद ,
क़िस्तों में कर रहे हैं वह तब्दीलियाँ पसंद ,
बस थोड़े फासले पे है इंसानियत की राह ,
करते रहें सफ़र कि रहे हौसला बुलंद .

वादा तलब 
नाज़ ओ अदा पे मेरे न कुछ दाद दीजिए ,
मत हीरे मोतियों से मुझे लाद दीजिए ,
हाँ इक महा पुरुष की है, धरती को आरज़ू ,
मेरे हमल को ऐसी इक औलाद दीजिए .

काश 
तोहफ़ा पाने का हसीं एहसास होती ज़िंदगी ,
ज़िंदा रहने के लिए यूँ रास होती ज़िंदगी ,
नब्ज़ मंडलाती न हरदम यूँ बक़ा के वास्ते ,
धड़कने होतीँ न , पैहम सास होती ज़िंदगी .

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