Monday, October 12, 2015

Junbishen 698

क़तआत

मिठ्ठू मियाँ 
पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .


मुज़ब्ज़ब 
इकबाल बग़ावत लिए लगते हैं ग़ज़ल में,
डरते हैं, सदाक़त को छिपाए हैं, हमल में,
बातिन में हैं कुछ और, निभाए हैं खुद को,
जैसे थे मुसलमाँ नए, बुत दाबे बग़ल में .


मिठ्ठू मियाँ 
पढ़ते हो झुकाए हुए सर क़िस्सा कहानी,
अंजान जुबां में है लिखी देव की बानी ,
यूँ लूट के ले जाते हो अंबार ए सवाब ,
दर पे हैं अज़ाबों के ये हालात जहानी .

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