Monday, September 14, 2015

Junbishen 686




 ग़ज़ल
दुश्मनी गर बुरों से पालोगे,
ख़ुद को उन की तरह बना लोगे।

तुम को मालूम है, मैं रूठूँगा,
मुझको मालूम है,  मना लोगे।

लम्स1 रेशम हैं, दिल है फ़ौलादी ,
किसी पत्थर में, जान डालोगे।

मेरी सासों के डूब जाने तक,
अपने एहसान, क्या गिना लोगे।

दर के पिंजड़े के, ग़म खड़े होंगे,
इस में खुशियाँ, बहुत जो पालोगे।

सूद दे पावगे, न "मुंकिर" तुम,
क़र्ज़े ना हक़, को तुम बढ़ा लोगे।
1-स्पर्श

No comments:

Post a Comment