Wednesday, August 26, 2015

Junbishen 679

नज़्म 

दावत ए फ़िक्र 1

सोचो सीधे शरीफ़ इंसानों!
शख्सी२ आज़ादिए तबअ३ क्या है?
यह तुम्हारी अजीब फ़ितरत है,
अपने अंदर के नर्म गोशों में,
इक शजर खौफ़ का उगाते हो,
और खुशियों की आरज़ू लेकर,
गर्दनें अपनी पेश करते हो,
मज़हबी डाकुओं की खिदमत में,
सेवा में, धार्मिक लुटेरों के,
हैं जो झूटे वह खूब वाक़िफ़ हैं,
खौफ़ से जो तुम्हारे अंदर है,
वह तुम्हारा इलाज करते हैं,
मॉल के बदले चाल को देकर।
लस-सलाह की वह सदा देते हैं,
अपनी इस्लाह४ वह नहीं करते,
लल्फ़लाह की सदा लगाते हैं,
ताकि इनकी फलाह५ होती रहे,
इनका ज़रिया मुआश६ का तकिया,
हमीं मेहनत कशों पे है रख्खी,
हर नई नस्ल इल्म नव७ से जुडें,
इनको यह कतई गवारह नहीं,
इनको शिद्दत पसंद८ बनाते हैं,
आयत ए शर९ से वर्गालाते हैं.
ऐ मेरी क़ौम ! वक़्त है जागो ,
साये से इनके दूर अब भागो .

१-चिंतन का आवाहन २- व्यक्तिगत 3- जेहनी आज़ादी 4-सुधार 5-भलाई इनके-भरण पोशन७-नई शिक्छा ८-अति वादी ९ -उग्रवादी आयतें

No comments:

Post a Comment