Friday, May 22, 2015

Junbishen 639 Ghazal 10


 ग़ज़ल

साफ़ सुथरी सी काएनात मिले,
तंग जेहनो से कुछ, नजात मिले।

संस्कारों में, धर्म और मज़हब,
न विरासत में जात, पात मिले।

आप की मजलिसे मुक़द्दस1 में,
सिर्फ़ फ़ितनों के, कुछ नुक़ात2 मिले।

तुझ से मिल कर गुमान होता है,
बस की जैसे, खुदा की ज़ात मिले।

उलझी गुत्थी है, सांस की गर्दिश,
एक सुलझी हुई, हयात मिले।

हर्फ़ ए आखीर हैं, तेरी बातें,
इस में ढूँढा कि कोई बात मिले।

१-सदभाव-सभा २-षड़यंत्र-सूत्र

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