Wednesday, May 6, 2015

Junbishen 631 ghazal 2

ghazal


शोर-किब्रियाई1 है, और स्वर हरे ! हरे !!

बख्श दे इन्हें खुदा, ईशवर उन्हें तरे।

वह है सच जो तूर पर, माइले-कलाम है?2

या कि उस पहाड़ पर, जो कि है जटा धरे।

आसमाँ पर वह उड़ा, आप का यकीं अरे?

कैसा आदमी था वह, अपनी ज़ात से परे?


कब्र को खिला रहे हो, तुम सवाब की गिज़ा,

तुम को क्या ज़मीन, पर कोई भूक से मरे।

यह ख़ुदा का घर नहीं है, तेरे घर में है ख़ुदा,

क्यूँ भटक रहा है तू, काबा काशी बाँवरे।

है ख़बर कि चल पड़े, दोनों तेरी रह पर,

ये ख़बर भी आएगी, कि दोनों फिर से लड़ मरे।

१-ईश वंदना का शोर २-अर्थात मूसा जो तूर पर्वत पर जाकर ईश्वर से बातें करते थेs


1 comment:

  1. मुस्कराते लब किनार चश्में-आब से भरे..,
    किश्तियाँ तेरे नाम की थरथरा के उतरे.....

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