Thursday, November 13, 2014

Junbishen 253


गज़ल

जहाँ रुक गया हूँ वह मंजिल नहीं है ,
ये तन आगे बढ़ने के क़ाबिल नहीं है .

 नफ़ी लेके मुल्क ए अदम जा रहा हूँ ,
अजब मुस्बतें हैं कि हासिल नहीं हैं .

ज़ईफ़ी , नहीफ़ी , ग़रीबी , असीरी ,
सदा कर आना कोई क़ातिल नहीं है .

जो रूपोश वहशत, नफ़स चुन रही है,
वह ग़ालिब हैं मद्दे मुक़ाबिल नहीं हैं .

तेरे हुस्न की बे रुखी कह रही है ,
तेरे पास सब कुछ है, बस दिल नहीं है .

ये मुंकिर नई  रहगुज़र चाहता है ,
तुम्हारी क़तारों में शामिल नहीं है .

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