Saturday, November 15, 2014

Junbishen 254



ग़ज़ल 

(आख़री ग़ज़ल को लंदन में कही) 

कहा इस्म आज़म की तशरीह कर ,
कहा लाइलः की इबारत है यह । 

कहा हर मुसलमाँ , मुसलमां का हो ,
कहा कि तअस्सुब कुदूरत है यह । 

कहा यह इबादत भी इक कुफ्र है ,
कहा कि क़बीलों की आदत है यह। 

कहा इश्क़ ए मारूफ में डूब जा ,
कहा कोई जिंस ए लताफ़त है यह। 

कहा लज़्ज़तों की हक़ीक़त है क्या ,
कहा फ़ाक़ा मस्तों को मोहलत है यह। 

कहा तू नफ़ी में ख़ुशी करके चल ,
कहा ऐन इद्दत में शिद्दत है यह। 

कहा पाक ए अर्जी की तहरीक कर ,
कहा बिद्अतों की तिजारत है यह। 

कहा फिर नए रब रब की पहचान कर ,
कहा कि सदा ए सदाक़त है यह। 



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