रूबाइयाँ
यह मर्द नुमायाँ हैं मुसीबत की तरह,
यह ज़िदगी जीते हैं अदावत की तरह ,
कुछ दिन के लिए निस्वाँ क़यादत आए,
खुशियाँ हैं मुअननस सभी औरत की तरह.
जन्मे तो सभी पहले हैं हिन्दू माई!
इक ख़म माल जैसे हैं ये हिन्दू भाई,
इनकी लुद्दी से हैं ये डिज़ाइन सभी,
मुस्लिम, बौद्ध, सिख हों या ईसाई.
गुफ़्तार के फ़नकार कथा बाचेंगे,
मुँह आँख किए बंद भगत नाचेंगे,
एजेंट उड़ा लेंगे जो थोड़ी इनकम,
महराज खफ़ा होंगे बही बंचेगे.
माहौल पे हो छाए तरक्क़ी के नशे में ,
नस्लों को खाते हो तरक्क़ी के नशे में,
मुसबत नफ़ी को देखो , मीजान में ज़रा,
क्या खोए हो , क्या पाए तरक्क़ी के नशे में।
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