Saturday, November 29, 2014
Thursday, November 27, 2014
Tuesday, November 25, 2014
Sunday, November 23, 2014
Friday, November 21, 2014
Wednesday, November 19, 2014
Monday, November 17, 2014
Saturday, November 15, 2014
Junbishen 254
ग़ज़ल
(आख़री ग़ज़ल को लंदन में कही)
कहा इस्म आज़म की तशरीह कर ,
कहा लाइलः की इबारत है यह ।
कहा हर मुसलमाँ , मुसलमां का हो ,
कहा कि तअस्सुब कुदूरत है यह ।
कहा यह इबादत भी इक कुफ्र है ,
कहा कि क़बीलों की आदत है यह।
कहा इश्क़ ए मारूफ में डूब जा ,
कहा कोई जिंस ए लताफ़त है यह।
कहा लज़्ज़तों की हक़ीक़त है क्या ,
कहा फ़ाक़ा मस्तों को मोहलत है यह।
कहा तू नफ़ी में ख़ुशी करके चल ,
कहा ऐन इद्दत में शिद्दत है यह।
कहा पाक ए अर्जी की तहरीक कर ,
कहा बिद्अतों की तिजारत है यह।
कहा फिर नए रब रब की पहचान कर ,
कहा कि सदा ए सदाक़त है यह।
Thursday, November 13, 2014
Junbishen 253
गज़ल
जहाँ रुक गया हूँ वह मंजिल नहीं है ,
ये तन आगे बढ़ने के क़ाबिल नहीं है .
नफ़ी लेके मुल्क ए अदम जा रहा हूँ ,
अजब मुस्बतें हैं कि हासिल नहीं हैं .
ज़ईफ़ी , नहीफ़ी , ग़रीबी , असीरी ,
सदा कर आना कोई क़ातिल नहीं है .
जो रूपोश वहशत, नफ़स चुन रही है,
वह ग़ालिब हैं मद्दे मुक़ाबिल नहीं हैं .
तेरे हुस्न की बे रुखी कह रही है ,
तेरे पास सब कुछ है, बस दिल नहीं है .
ये मुंकिर नई रहगुज़र चाहता है ,
तुम्हारी क़तारों में शामिल नहीं है .
Tuesday, November 11, 2014
Junbishen 252
गज़ल
आगही सो गई है डेरे में ,
है वह नागाह तेरे मेरे में .
थक गया करवटों से महलों की ,
आओ मिल कर जिएँ बसेरे में ,
ज़ायक़ा कुछ क़िनात का चक्खें
क्या धरा है हवस के ढेरे में .
ऐ मुआलिज इलाज कर अपना ,
मुब्तिला तू है ज़र के फेरे में .
एक बूढ़े के आँख में आँसू ,
आग लग जाएगी जज़ीरे में .
लअनतें बे असर हुईं वाइज़ ,
है ये 'मुंकिर' जज़ा के घेरे में .
Sunday, November 9, 2014
Junbishen 251
गज़ल
तलवार है समाज की फ़ितरत के हैं गले ,
गाए कहाँ पे इश्क़, कहाँ फूले और फले .
दातों तले ज़बान हो, या हाथ तू मले ,
मुंह से तेरे फिसल ही गई, बात हल्बले .
क्या खूब हो कि एक हवा, मौत की चले ,
शाखों को छोड़ जाएँ सभी, फल सड़े गले.
ख़बरें फ़ना की और किसी नव जवां को हों,
जुज़्दान में ही रख अभी, क़ब्री मुआमले .
खुद साज़ियाँ मना हैं, तो खुद सोज़ियाँ हराम,
इस मसलिकी निज़ाम में, मुश्किल हैं मरहले .
किन मौसमों में क्या क्या, बोया कहाँ कहाँ ,
मुंकिर पकी हैं फ़स्ल सभी, जा के काट ले.
Friday, November 7, 2014
Junbishen 250
गज़ल
जब तक रवा रखोगे, मेरे साथ तुम बुख़ालत,
तब तक न कर सकूँगा, मेरे यार मैं क़िनाअत।
बेदारियां ये कैसी? कि खिंचता है सम्त ए माज़ी ,
बेहोशी ही भली थी, तेरा सोना ही ग़नीमत .
क़ुर्बानियों का जज़्बा, मज़ाहिब की तश्नगी है ,
खूराक इनको भाए, वफ़ादारों की शहादत .
लिपटा हुवा जवाँ है, मज़ारों के देवता से,
शर्मिंदा जुस्तुजू है, हमागोश है अक़ीदत .
मुमकिन नहीं की ख़ालिक़, अगर हो तो मुन्तक़िम हो,
होगा अगर जो होगा , माँ बाप की ही सूरत.
मेरी तरह ही तुम भी, हटा लोगे बोझ दिल का ,
क्या शय है फ़िक्र ए मुंकिर, ज़रा समझो इसकी क़ीमत.
Wednesday, November 5, 2014
Junbishen 249
गज़ल
हरगिज़ न परेशां हों, जो इलज़ाम लगा हो,
जब तक कि हक़ीक़त में, तुम्हारी न ख़ता हो .
जो बातें बड़ों की तुम्हें अच्छी न लगी हों,
बेजा है की छोटों को, वही तुमने कहा हो.
वह मौत की तफ़सीर बताने में है माहिर,
जिसने कि कभी ज़िन्दगी, समझा न जिया हो.
जज़्बात के कानों में ज़रा उंगली लगा ले,
जब खूं में तेरे, आग कोई घोल रहा हो.
वह बोझ गुनाहों का,उठाए है कमर पे,
अब ढूंढ रहा है कि कहीं कोई गढ़ा हो.
नस्लों का तेरे चाँद सितारों पे जनम हो ,
जन्नत की नहीं, हक में मेरे ऐसी दुआ हो .
Monday, November 3, 2014
Junbishen 248
रूबाइयाँ
यह मर्द नुमायाँ हैं मुसीबत की तरह,
यह ज़िदगी जीते हैं अदावत की तरह ,
कुछ दिन के लिए निस्वाँ क़यादत आए,
खुशियाँ हैं मुअननस सभी औरत की तरह.
जन्मे तो सभी पहले हैं हिन्दू माई!
इक ख़म माल जैसे हैं ये हिन्दू भाई,
इनकी लुद्दी से हैं ये डिज़ाइन सभी,
मुस्लिम, बौद्ध, सिख हों या ईसाई.
गुफ़्तार के फ़नकार कथा बाचेंगे,
मुँह आँख किए बंद भगत नाचेंगे,
एजेंट उड़ा लेंगे जो थोड़ी इनकम,
महराज खफ़ा होंगे बही बंचेगे.
माहौल पे हो छाए तरक्क़ी के नशे में ,
नस्लों को खाते हो तरक्क़ी के नशे में,
मुसबत नफ़ी को देखो , मीजान में ज़रा,
क्या खोए हो , क्या पाए तरक्क़ी के नशे में।
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