Saturday, October 11, 2014

Junbishen 239



गज़ल

अब मेरी उस से बोल चाल नहीं,
है सुकूं, कोई क़ील ओ क़ाल नहीं . 

मेरी उस से अजब लड़ाई है, 
सर में तलवार, दिल में बाल नहीं . 

तेरी रिश्वत की तर बतर रोटी,
मैं भी खाऊँ, कोई सवाल नहीं .

मैंने माना कि तेरा दीं सही,
हाँ मगर आज हस्ब ए हाल नहीं .

तालिबान ए ख़ुदा न तोड़ो बुत, 
अपने पुरखों का कुछ ख़याल नहीं .

हद से करता नहीं तजाउज़ वह ,
कहाँ मुंकिर में एतदाल नहिन. 

1 comment:

  1. गजरदम शब की ताज़ीम करे क्यूँकर..,
    इस सियह कारि का उसको मलाल नहीं.....

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