Saturday, August 30, 2014

Junbishen 233


गीत

ख़लील जिब्रान के नाम 

बहुत थके ऐ हमराही हम , आओ थोड़ा जी जाएँ ,
मैं भी प्यासा , तुम भी प्यासे , इक दूजे को पी जाएँ .

अरमानो के बीज दबे हैं , बर्फ़ीली चट्टानों में ,
बरखा रानी हिम पिघला , अंकुर फूटें , हम लहराएँ .

कुछ न बोलें , मुँह न खोलें , शब्दों के परछाईं तले ,
चारों नयनों के दर्पन को , सारी छवि दे दी जाएँ .

तेरे तन की झीनी चादर , मेरे देह की तंग क़बा ,
आओ दोनों परिधानों को, उतन पुतन के सी जाएँ .

सूरज के किरनों से बंचित , नर्म हवाओं से महरूम ,
काया क़ैदी कपड़ों की है ,आओ बग़ावत की जाएँ .

1 comment:

  1. बसन बासन छत छादन, बाहिर जगत ढकाए ।
    सत्य सील सद आचरन, अंतरतम गुंठाए ।१७९६।

    भावार्थ : - वास हो आवास ही छत हो कि आच्छादन हो ये बाह्य जगत को ढंकते हैं । सत्य विचार, सद्व्यवहार, नैतिक आचरण आदि अंतर जगत के ढकाव हैं ॥

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