Thursday, July 17, 2014

Junbishen 315


रूबाइयाँ 

दंगों में शिकारी को लगा देते हो,
शैतां की तरह पाठ पढ़ा देते हो,
फुफकारते हो धर्म ओ मज़ाहिब के ज़हर,
तुम जलते हुए दीप बुझा देते हो.



दोज़ख से डराए है मुसलसल मौला,
जन्नत से लुभाए है मुसलसल मौला,
है ऐसी ज़हानत कि ज़हीनो को चुभे ,
हिकमत को जताए है मुसलसल मौला,.


बस गाफिल ओ नादर डरा करते हैं,
यारों से कहीं यार डरा करते हैं,
मत मुझको डरना किसी क़ह्हारी से,
मौला से गुनहगार डरा करते हैं.

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