Thursday, July 3, 2014

Junbishen 309



नज़्म 

कर्ब ए तन्हाई 

तू भी चल उस सम्त, जिस पर ये ज़माना है रवां ,
वर्ना छुट जाएगा 'मुंकिर' तुझ से तेरा कारवां .
अपने धुन की बोझ लेकर, तनहा तू रह जाएगा ,
इन्किशाफ़ ऍ राज़ ऍ हस्ती किस पे तू झलकाएगा .
क्यों गुरेज़ाँ है जहाँ, खुद अपनी ही तकमील से ,
क्यों झुसस जाती है दुन्या, सच की इक क़िनदील से .
नव अज़ाँ  का सिलसिला, लेता है क्यों मुद्दत तवील ,
सौ सफ़र में रख के क्यों, आता है अगला संग ए मील .
ज़ेहन कैसे हम सफ़र हों , इरतेक़ाई चाल के ,
मुज़्तरिब फ़ितरत को हैं, हर लम्हा सौ सौ साल के. 
इंतज़ार इ वक़्त बन, वह दिन यक़ीनन आएगा ,
मज़हबों के इस जुनूँ से, आदमी थर्राएगा .

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