Thursday, June 5, 2014

Junbishen 297



नज़्म 

मौसम का चितेरा 

बाहर निकल के देखो, मौसम का रंग क्या है ?
तूफ़ान थम चुका है ? आसार ए जिंदगी है ?
छूकर बताओ मुझको , कुछ नाम हुई ज़मीं क्या ?
फ़सलों के चरिन्दे वह, क्या दूर जा चुके हैं ?
बीजों के चोर चूहे, क्या कर गए हैं रुखसत ?
बेदार हो चुके हैं , क्या लोग इस ज़मीं के ? 
इंसानियत की फसलें, क्या रोपी जा सकेंगी ?
पौदों को सर पे रख्खे, रख्खे मैं थक गया हूँ।
मुरझा न जाएं खुशियाँ, मैं इनको रोप डालूँ।

1 comment:

  1. आसेबज़दा परिंदों को आशियाने की जरुरत है ..,
    साफ़री को भी सुकूनती सायबाने की जरुरत है..,
    ऐ चमनबंद तिरी तदबीर से आबाद हो ये चमन..,
    गुलों को रंग बुलबुल को आबोदाने की जरूरत है......

    आसेबज़दा = कष्टी
    साफ़री = यात्री
    सुकूनती = विश्रामदायक

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