Tuesday, June 17, 2014

Bedariyan 301

रूबाइयाँ 


सब कुछ यहीं ज़ाहिर है, खुला देख रहे हो,
क़ुदरत लिए हाज़िर है, खुला देख रहे हो,
बातिन में छिपाए है, वह इल्मे- नाक़िस,
वह झूट में माहिर है खुला देख रहे हो,


छाई है घटाओं की बला, आ जाओ,
हल्का सा तबस्सुम ही सही, गा जाओ,
गर चाहो तो, हो जाओ ज़रा दरया दिल,
प्यासों पे घटाओं की तरह छा  जाओ.

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लोगों के मुक़दमों में पड़े रहते हो,
नज़रों को नज़ारों को तड़े रहते हो,
खुद अपने ही हस्ती से नहीं मिलते कभी,
और ताज में ग़ैरों के जड़े रहते हो.

1 comment:

  1. बसनाभूषन धार जूँ, दुल्हन लागे ठूँठ ।
    सुठि सुठि सब्द सिँगार तौं, आगे साँच प्रति झूठ ।१६१६।

    भावार्थ : -- दुहन के वस्त्र आभूषण धारण कर जिस प्रकार खूंटी भी दुल्हन लगती है वस्तुत: वह दुल्हन होती नहीं । उसी प्रकार सुन्दर सुंदर शब्दों का श्रृंगार कर प्रत्येक झूठ भी सत्य ही लगता है वस्तुत: वह सत्य होता नहीं।।

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