Sunday, May 11, 2014

Junbishen 265



रूबाइयाँ 


हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो, 
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो, 
बे कुसूर, बे नयाज़ पर आंच न आए, 
आग के हवाले न कोई माल करो. 


शीशे के मकानों में बसा है पच्छिम, 
मय नोश, गिज़ा ख़ोर, है पुर जोश मुहिम, 
सब लेता है मशरिक के गदा मग़ज़ोन से, 
उगते हैं जहाँ धर्म गुरु और आलिम. 



पीटते रहोगे ये लकीरें कब तक?
याद करोगे माज़ी की तीरें कब तक,
मुस्तकबिल पामाल किए हो यारो,
हर हर महादेव, तक्बीरें कब तक?

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