Saturday, May 31, 2014

Junbishen 294


गज़ल

आप वअदों की हरारत को, कहाँ जानते हैं.
हम जो रखते हैं, वह पत्थर की ज़ुबाँ जानते हैं.

पुरसाँ हालों को, बताते हुए मेरी हालत,
मुस्कुराते हैं, मेरा दर्दे निहाँ निहाँ जानते हैं.

क़ौम को थोडी ज़रुरत है, मसीहाई की,
आप तो बस की फ़ने तीर ओ कमाँ जानते हैं.

नंगे सर, नंगे बदन, उनको चले आने दो,
वोह अभी जीने के, आदाब कहाँ जानते हैं.

नहीं मअलूम किसी को, कि कहाँ है लादेन,
सब को मअलूम है कि अल्लाह मियाँ जानते हैं.

न तवानी की अज़ीयत में पड़े हैं 'मुंकिर',
है बहारों का ये अंजाम,खिज़ां जानते हैं.
*****
*मसीहाई=मसीहाई*न तवानी=दुर्बलता* अज़ीयत=कष्ट


Thursday, May 29, 2014

Junbishen 283



गज़ल

आप वअदों की हरारत को, कहाँ जानते हैं.
हम जो रखते हैं, वह पत्थर की ज़ुबाँ जानते हैं.

पुरसाँ हालों को, बताते हुए मेरी हालत,
मुस्कुराते हैं, मेरा दर्दे निहाँ निहाँ जानते हैं.

क़ौम को थोडी ज़रुरत है, मसीहाई की,
आप तो बस की फ़ने तीर ओ कमाँ जानते हैं.

नंगे सर, नंगे बदन, उनको चले आने दो,
वोह अभी जीने के, आदाब कहाँ जानते हैं.

नहीं मअलूम किसी को, कि कहाँ है लादेन,
सब को मअलूम है कि अल्लाह मियाँ जानते हैं.

न तवानी की अज़ीयत में पड़े हैं 'मुंकिर',
है बहारों का ये अंजाम,खिज़ां जानते हैं.
*****
*मसीहाई=मसीहाई*न तवानी=दुर्बलता* अज़ीयत=कष्ट

Tuesday, May 27, 2014

Junbishen 282




गज़ल

चाहत है तेरी, और तेरा इंतेख़ाब है,
क्या दोस्त तेरा, तेरी तरह लाजवाब है?

सो लेना चाहिए, तुझे कुछ देर के लिए,
नींद की हालत में, यह बेजा खिताब1 है।

है एक ही नुमायाँ, वहाँ चाँद की तरह,
बाक़ी हसीन चेहरों के, रुख पे नकाब है।

शायर है बेअमल, कि इसे बा अमल करो,
चक्खी नहीं कभी, मगर मौज़ूअ शराब है।

क़ानून क़ाएदों के, उसूलों की नींद में ,
उस घर में घुस गया, जहाँ जीना सवाब है।

रोका नहीं है भीड़ ने, टोका है, रुका हूँ,
'मुंकिर' को रोक ले, ये भला किस में ताब है।

१ -संबोधन


Sunday, May 25, 2014

Jnbishen 281

रूबाइयाँ 



पीटते रहोगे ये लकीरें कब तक?
याद करोगे माज़ी की तीरें कब तक,
मुस्तकबिल पामाल किए हो यारो,
हर हर महादेव, तक्बीरें कब तक?


माद्दा परस्ती में है बिरझाई हुई,
नामूस ए खुदाई पे है ललचाई हुई,
इंसानी तरक्की से कहो जल्द मरे,
है आलम ए बाला से खबर ई हुई.


मोमिन ये भला क्या है, दहरया क्या है,
आला है भला कौन, ये अदना क्या है,
देखो कि मुआश का क्या है ज़रीआ?
जिस्मों में रवां खून का दरिया क्या है?

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75

Sunday, May 18, 2014

Junbishen 260



गज़ल

सुब्ह फिर शुरू हुई है, आँखें फिर हुई न हैं नम,
चल गरानी ए तबअ, सर पे रख के अपने ग़म.

नेमतें हज़ार थीं, इक ख़ुलूस ही न था,
तशना रूह हो गई, भर गया था जब शिकम.

बे यक़ीन लोग हैं, उन सितारों की तरह,
टिमटिमा रहे हैं कुछ, और दिख रहे है कम.

उँगलियाँ थमा दिया था, मैं ने उस कमीन को,
कर के मुझको सीढयाँ, सर पे रख दिया क़दम.

कहर न गज़ब है वह, फ़ितरी वाक़ेआत हैं,
तुम मुक़ाबला करो, वोह है माइले सितम.

राज़दार हो चुका है, कायनात का जुनैद,
जुज़्व बे बिसात था, कुल में हो गया है ज़म.

Friday, May 16, 2014

Junbishen 288




गज़ल

हर शब की क़ब्रगाह से, उठ कर जिया करो,
दिन भर की ज़िन्दगी में, नई मय पिया करो।

उस भटकी आत्मा से, चलो कुछ पता करो,
इस बार आइना में बसे, इल्तेजा करो।

दिल पर बने हैं बोझ, दो मेहमान लड़े हुए,
लालच के संग क़ेनाअत1, इक को दफ़ा करो।

तुम को नजात देदें, शबो-रोज़ के ये दुःख,
ख़ुद से ज़रा सा दूर, जो फ़ाज़िल गिज़ा करो।

दरवाज़ा खटखटाओ, है गर्क़े-मुराक़्बा2,
आई नई सदी है, ज़रा इत्तेला करो।

'मुंकिर' को क़त्ल कर दो, है फ़रमाने-किब्रिया3 ,
आओ कि हक़ शिनास को, मिल कर ज़िबा करो।

१-संतोष २-तपस्या रत ३-ईश्वरीय आगयान

Wednesday, May 14, 2014

Junbishen 287



गज़ल

तुम भी अवाम की, ही तरह डगमडा गए,
मेरे यकीं के शीशे पे, पत्थर चला गए.

घायल अमल हैं, और नज़रिया लहू लुहान,
तलवार तुम दलील की, ऐसी चला गए.

मफरूज़ा हादसात, तसुव्वुर में थे मेरे,
तुम कार साज़ बन के, हक़ीक़त में आ गए.

पोशीदा एक डर था, मेरे ला शऊर में,
माहिर हो नफ़्सियात के, चाक़ू थमा गए.

भेड़ों के साथ साथ, रवाँ आप थे जनाब,
उन के ही साथ गिन जो दिया, तिलमिला गए.

खुद एतमादी मेरी, खुदा को बुरी लगी,
सौ कोडे आ के उसके सिपाही लगा गए.
*****
*मफरूज़ा=कल्पित *कार साज़=सहायक *ला शऊर=अचेतन मन *नफ़्सियात=मनो विज्ञानं *खुद एतमादी=आत्म विश्वास

Monday, May 12, 2014

Junbishren 286

मुस्कुराहटें

चेहरे 


सीमीं ज़ुल्फ़ें हैँ , नुकरई चेहरा ,
तोले माशे क कीमती चेहरा। 

दिल को बहलाऊँ याकि दहलाऊं ?
देख कर उसका रुस्तमी चेहरा।

पीकदानों के पास रहता है ,
कथ्थई मुंह है , गुटकई चेहरा।

रुख पे रौनक़ उधार की सी है 
है बखीली , किफायती चेहरा।

चल  नहीं पाता , अन्न क दुश्मन ,
तन घिड़ौची है , मटकई चेहरा।

हम भी दुम्बों से गोश्त छीनेंगे ,
है ये ग़ुरबत का आरजी चेहरा।

तुम पे यह इल्म है मुसल्लत सा ,
उतार फेंको , क़ाग़ज़ी चेहरा।

चेहरा मुंकिर का , दिल के जैसा है ,
ख़ूब सूरत , सलोनवी चेहरा।

Sunday, May 11, 2014

Junbishen 265



रूबाइयाँ 


हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो, 
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो, 
बे कुसूर, बे नयाज़ पर आंच न आए, 
आग के हवाले न कोई माल करो. 


शीशे के मकानों में बसा है पच्छिम, 
मय नोश, गिज़ा ख़ोर, है पुर जोश मुहिम, 
सब लेता है मशरिक के गदा मग़ज़ोन से, 
उगते हैं जहाँ धर्म गुरु और आलिम. 



पीटते रहोगे ये लकीरें कब तक?
याद करोगे माज़ी की तीरें कब तक,
मुस्तकबिल पामाल किए हो यारो,
हर हर महादेव, तक्बीरें कब तक?

***

Thursday, May 8, 2014

Junbishen 284



गज़ल

तरस न खाओ, मुझे प्यार कि ज़रुरत है,
मुशीर कार नहीं यार कि ज़रुरत है.

तुम्हारे माथे पे उभरे हैं, सींग के आसार,
तुम्हें तो फ़तह नहीं हार की ज़रुरत है.

कलम की निब ने, कुरेदा है ला शऊर तेरा,
जवाब में कहाँ, तलवार की ज़रुरत है.

अदावतों को भुलाना भी, कोई मुश्क़िल है,
दुआ, सलाम, नमस्कार की ज़रुरत है.

शुमार शेरों का होता है, न कि भेड़ों का,
कसीर कौमों, बहुत धार की ज़रुरत है.

तुम्हारे सीनों में आबाद इन किताबों को,
बस एक 'मुंकिर' ओ इंकार कि ज़रुरत है.
*****
*मुशीर कार = परामर्श दाता *ला शऊर =अचेतन मन

Tuesday, May 6, 2014

Junbishen 283


गज़ल

मोहलिक तरीन रिश्ते, निभाए हुए थे हम,
बारे गराँ को सर पे, उठाए हुए थे हम.

खामोश थी ज़ुबान, कि  अल्फ़ाज़  ख़त्म थे,
लाखों गुबार दिल में दबाए हुए थे हम.

ठगता था हम को इश्क, ठगाता था खुद को इश्क,
कैसा था एतदाल, कि पाए हुए थे हम.

गहराइयों में हुस्न के, कुछ और ही मिला,
न हक़ वफ़ा को मौज़ू ,बनाए हुए थे हम.

उसको भगा दिया कि वोह, कच्चा था कान का,
नाकों चने चबा के, अघाए हुए थे हम.

सब से मिलन का दिन था, बिछड़ने की थी घडी,
'मुंकिर' थी क़ब्रगाह, कि  छाए हुए थे हम,
*****
*मोहलिक तरीन =हानि कारक *बारे गराँ=भारी बोझ *एतदाल=संतुलन *मौज़ू=विषय.

Sunday, May 4, 2014

Junbishen 282



गज़ल

है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है।

दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को, तू छूने में लसा है।

बकता है आसमा को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस ज़ोर से कसा है।

सच बोलने के खातिर, दो आँख ही बहुत थीं,
अलफ़ाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है।

कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फ़ासला था, सदियों का हादसा है।

है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए 'मुंकिर' गिर्दाब में बसा है.

*****
*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर