Sunday, March 23, 2014

Junbishen 163



नज़्म 


गुलकारियां

सवाब क्या है, खुशी तुम्हारी,
अज़ाब क्या है, तुम्हारी उलझन,
' वहाँ ' पे कुछ भी नहीं है प्यारे,
यहीं पे सब कुछ, है रोजे-रौशन।

इताबे1क़ुदरत, है ख़ौफ़-हैवाँ 2,
ख़ुदा का क़हर और फ़रेबे-शैतां,
बचे हैं इन्सां, कि बाद इनके,
चलो कि आपस में बाटें सावन।

वो पेड़ दूषित, फ़सल जो उपजें,
चलो कि देखें, जड़ों में इनके,
कहाँ से लेती हैं गर्म सासें,
कहाँ से पाती हैं दुष्ट जीवन।

ख़ुदा को क़िस्तों में माना हम ने,
थी ख़ौफ़ अव्वल और लौस3 दोयम,
फ़रेब, धोखा थी क़िस्त सोयम,
और चौथी, जंगें, विजय, समर्पन ।

अजब हैं ज़ेहनी इबारतें यह,
सवाल उज्जवल जवाब मद्धम,
ख़याल 'उस' की तरफ़ है मायल,
दिमाग़ मांगे सुबूतो-दर्शन।

शबाब क़ातिल, बला का जोबन,
बहक गई है यह महकी जोगन,
इसे ठिकाना बुला रहा है,
कोई बनाए इसे सुहागन।

१-प्राकृतिक आपदा २-पशु-भय ३ -लालच

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