Tuesday, March 18, 2014

junbishen 161



इबरत का नज़ारा 
शमशान में जलती हुई, लाशों का नज़ारा,
या कब्र में उतरी हुई, मय्यत का इशारा,
देते हैं ये जीने का सबक़, अह्ल ए हवस को,
समझो तो समझ पाओ, कि कितना हो तुम्हारा    

प्रशंशनीय 
प्रदर्शनी प्रकृति की, नहीं पूजनीय है ,
ये आपदा , विपदा भी, नहीं निंदनीय है ,
भगवान् या शैतान नहीं होती है क़ुदरत ,
जो कुछ मिला है इससे, वह प्रशंशनीय .

कसौटी 
ईमान को पाया है या ईमान लिया है ?
मनवाया गया है कि इसे मान लिया है .
फटका है ? पछोरा है ? इसे जान लिया है ?
लोगों के गढ़े देव को पहचान लिया है ?

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