Friday, February 28, 2014

Junbishen 153


दोहे

माटी के तन पर तेरे, चढत है चादर पीर,
बिन चादर के सहित में, मानव तजें शरीर.


मानव जीवन युक्ति है, संबंधों का जाल।
मतलब के फांसे रहे, बाक़ी दिया निकाल॥


पानी की कल कल सुने, सुन ले राग बयार।
ईश्वर वाणी है यही, अल्ला की गुफ्तार॥


चित को कैदी कर गई, लोहे की दीवार।
बड़ी तिजोरी में छिपी, दौलत की अम्बार॥


अल्ला को तू भूल जा , मत कर उसका ध्यान ,
अल्ला की मख्लूक़ का , पहले हो कल्यान .

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