Saturday, February 22, 2014

junbishen 150


नज़्म 

जुरवा कहिस

भ्रमित हव्यो गयो, भ्रमण करिके,
चार धाम हव्यो आएव ।
माँगा, बाँटा अउर परोसा,
ज्ञान सभै लै आएव।
जोड़ा गांठा धेला पैसा,
पनडन का दै आएव,
दइव रहा मन तुम्हरे बैठा,
ओह पर न पतियाएव।

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