Monday, February 10, 2014

Junbishen 144

रूबाइयाँ 
अल्लाह उन्हें रख्खे, उनकी क्या बात,
हर वक़्त रहा करते हैं सब से मुहतात,
खाते हैं छील छाल कर रसगुल्ले, 
पीते है उबाल कर मिला आबे-हयात.


फ़िरऔन मिटे, ज़ार ओ सिकंदर टूटे,
अँगरेज़ हटे नाज़ि ओ हिटलर टूटे,
इक आलमी गुंडा है उभर कर आया,
अल्लाह करे उसका भी ख़जर टूटे.


हलकी सी तजल्ली से हुआ परबत राख,
इंसानी बमों से हुई है बस्ती ख़ाक,
इन्सान ओ खुदा दोनों ही यकसाँ ठहरे,
शैतान गनीमत है रखे धरती पाक.

1 comment:

  1. शकरी बीमारी शरीफ को असुर बना देती है..,
    दावते-दरबारे 'खास' में मजबूर बना देती है..,
    ज़रा लबों पे क्या रखी जबाँ ही जला देती है..,
    फोड़े बन के फूटती है औ नासूर बना देती है.....

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