Wednesday, November 20, 2013

Junbishen 105

muskaan 

मुस्कान 

नसीहतें 

मत आना इन के जाल में ऐ मेरे भतीजे ,
अक्साम ए खुदा सब हैं क़यासों के नतीजे .

जो बात तुझे लगती हो फ़ितरत के मुखालिफ़ ,
उस बात पे हरगिज़ न मेरे लाल पसीजे .

जालों को बिछाए हैं ये रिश्तों के शिकारी ,
बहनें हों कि भाई हों कि साले हों कि जीजे .

मिट्टी को निजी चाक के तू  कर दे हवाले ,
माँ बाप की मुट्ठी तो रहेगी तुझे मींजे .

दिखला दे ज़माने को तेरा रंग ही जुदा है ,
टक्कर में तेरे कोई भी दूजे हैं न तीजे .

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