Sunday, June 16, 2013

Junbishen 31





नज़्म 

दस्तक 

घूँघट तो उठा दे कभी, ऐ वहिदे मुतलक़1  ,
चिलमन पे खड़ा कब से हूँ, आमादए दस्तक .

बाज़ार तेरे खैर की बरकत की लगी है ,
अय्यार लगाए हैं दुकानें , जो ठगी है .

तुज्जार2  तेरी शक्लें हजारो बनाए हैं ,
आपस में मुक़ाबिल भी हैं , तेवर चढ़ाए हैं .

अल्लाह बड़ा है , तू बड़ा है , तू बड़ा है ,
शैतान है छोटा जो तेरे साथ खड़ा है .

कब तक यह फसानों की हवा छाई रहेगी ,
माजी3  की सियासत की वबा छाई रहेगी .

सर पे है खड़ा वक़्त चढ़ाए हुए तेवर ,
हो जाए न महश4  से ही पहले कोई महशर .

अब सोच को बदलो भी क़दामत के पुजारी ,
मुंकिर तभी संवरेगी ज़रा नस्ल तुम्हारी . 

१-एकेश्वर २- व्यापारी ३-भूत काल ४-प्रलय 

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