Sunday, May 12, 2013

Junbishen 15


नज़्म 

ग्यारहवीं  सदी की आहें


हमारे घर में घुसे, बस कि धड़धदाए हुए ,
वो डाकू कौन थे? इन वादियों में आए हुए ।

यक़ीन ओ खौफ़,सज़ा और तमअ1की तलवारें ,
अजीब रब था कोई, उनको था थमाए हुए ।

खुदाए सानी2 बने हुक्मरां,वज़ीर ओ सिपाह ,
सितम के तेग़ थे, हर शख्स में चुभाए हुए ।

जेहाद उनकी बज़िद थी, लडो या जज़या  दो ,
नहीं तो ज़ेहनी गुलामी, को थे जताए हुए ।

दलाल उसके, रिया कारियों3 का दीन लिए ,
दूकाने अपनी थे, हर कूंचे में सजाए हुए ।

दोबारा रोपे गए हैं, वह शजर4 हैं 'मुंकिर',
महद5 से माँ के हैं, ज़ालिम उसे उठाए हुए ।

१-लालच २-द्वतीय ईश्वर ३-ढोंगी ४-पेड़ ५-पालना

1 comment:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल १४ /५/१३ मंगलवारीय चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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