Friday, March 8, 2013

ग़ज़ल --- तालीम नई जेहल मिटाने पे तुली है





तालीम नई जेहल1, मिटाने पे तुली है,
रूहानी वबा है, कि लुभाने पे तुली है।




बेदार शरीअत3 की, ज़रूरत है ज़मीं को,
अफ़्लाक़ 4 कि लोरी, ये सुलाने पे तुली है। 




जो तोड़ सकेगा, वो बनाएगा नया घर,
तरकीबे रफ़ू उम्र बिताने पे तुली है। 




किस शिद्दते जदीद की दुन्या है उनके सर 
बस ज़िन्दगी का जश्न मनाने पे तुली है।




मैं इल्म की दौलत को, जुटाने पे तुला हूँ,
क़ीमत को मेरी, भीड़ घटाने पे तुली है।




'मुंकिर' की तराज़ू पे अनल हक़ की  धरा5 है,
'जुंबिश' है कि तस्बीह के दानों पे तुली है।

१-अंध विशवास २-आध्यात्मिक रोग ३-बेदार शरीअत=जगी हुई नियमावली ४-आकाश ५-वह वजन जो तराजू का पासंग ठीक करता है 

1 comment:

  1. लहू रँगे-रब्बा हो दुआ हो के वफ़ा हो..,
    सजदे की सदा हद्द हो जाने पे तूली है.....

    लहू रँगे-रब्बा = तोप ले जाने वाली गाड़ी से रंगा लहू
    हद्द हो जाना = सुनवाई की अवधि बीत जाना

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