Friday, January 18, 2013

पतझड़ के पात


पतझड़ के पात

हूँ मुअल्लक़1 इन्तेहा-ओ-ख़त्म शुद2 के दरमियाँ।
ऐ जवानी! अलविदा!! अब आएगी दिल पर खिज़ाँ3

ज़ेहन अब बहके गा जैसे पहले बहके थे क़दम,
कूए-जाना4 का मुसाफिर जायगा अब आश्रम।

यह वहां पाजाएगा टूटा हुवा कोई गुरू,
ज़ख्म खुर्दा5 मंडली होगी, यह होगा फिर शुरू।

धर्मो-मज़हब की किताबें फिर से यह दोहराएगा,
नव जवानो को ब्रम्ह्चर और फिकः6 समझाएगा।

फिर यह चाहेगा कोई पहचान बन जाए मेरी,
दाढ़ी,चोटी,और जटा ही शान बन जाए मेरी।

फिर ये अपना बुत तराशेगा गुरू बन जाएगा,
ये समझता है ब़का7 में आबरू बन जाएगा।

१-बीच अटका हुवा २-इतिऔर समाप्ति ३-प्रेमिका की गली ५-घायल ६-धर्म-शास्त्र ७-शेष .

ग़ज़ल- - - अनसुनी सभी ने की दिल पे ये मलाल है





अनसुनी सभी ने की, दिल पे ये मलाल है,
मैं कटा समाज से, क्या ये कुछ ज़वाल है।

कुछ न हाथ लग सका, फिर भी ये कमाल है,
दिल में इक करार है, सर में एतदाल है।

जागने का अच्छा फन, नींद से विसाल है,
मुब्तिलाए रोज़ तू, दिन में पाएमाल है।

ख्वाहिशों के क़र्ज़ में, डूबा बाल बाल है,
खुद में कायनात मन, वरना मालामाल है।

है थकी सी इर्ताका, अंजुमन निढाल है,
उठ भी रह नुमाई कर, वक़्त हस्बे हाल है।

पेंच ताब खा रहे हो, तुम अबस जुनैद पर ,
खौफ है कि किब्र? है कैसा ये जलाल है

Friday, January 11, 2013

ग़ज़ल - - - गुस्ल ओ वज़ू से दागे अमल धो रहे हो तुम




 
 
गुस्ल ओ वज़ू से दागे अमल धो रहे हो तुम,
मज़हब की सूइयों से रफ़ू हो रहे हो तुम.
 
हर दाना दागदार हुवा देखो फ़स्ल का,
क्यूँ खेतियों में अपनी खता बो रहे हो तुम।
 
हथियार से हो लैस हँसी तक नहीं नसीब,
ताक़त का बोझ लादे हुए रो रहे हो तुम।
 
होना है वाकेआते मुसलसल वजूद का,
पूरे नहीं हुए हो, अभी हो रहे हो तुम।
 
इंसानी अजमतों का तुम्हारा ये सर भी है,
लिल्लाह पी न लेना, चरन धो रहे हो तुम।
 
"मुंकिर" को मिल रही है ख़ुशी जो हक़ीर सी,
क्यूँ तुम को लग रहा है कि कुछ खो रहे हो तुम।
 
*अजमतों=मर्याओं *लिल्लाह=शपत है ईश्वर की

Friday, January 4, 2013

ग़ज़ल - - - पश्चिम हंसा है पूर्वी कल्चर को देख कर






पश्चिम हंसा है पूर्वी,  कल्चर को देख कर,
हम जिस तरह से हंसते हैं, बंदर को देख कर.


चेहरे पे नातवां के, पटख देते हैं किताब,
रख देते हैं कुरआन, तवंगर को देख कर।


इतिहास मुन्तजिर है, भारत की भूमि का,
दिल खोल के नाचे, ये किसी नर को देख कर।


धरती का जिल्दी रोग है, इन्सान का ये सर,
फ़ितरत पनाह मांगे है, इस सर को देख कर।


यकता है वह जो सूरत, बातिन में है शुजअ,
डरता नहीं है ज़ाहिरी, लश्कर को देख कर।


झुकना न पड़ा, क़द के मुताबिक हैं तेरे दर,
"मुंकिर" का दिल है शाद तेरे घर को देख कर।




नातवां=कमज़ोर *तवंगर= ताक़तवर *फ़ितरत=पराकृति * बातिन=आंतरिक रूप में *शुजअ=बहादुर