Thursday, August 30, 2012

रुबाईयाँ


रुबाईयाँ 


लोगों के मुक़दमों में पड़े रहते हो,
नज़रों को नज़ारों को तड़े रहते हो,
खुद अपने ही हस्ती से नहीं मिलते कभी,
और ताज में ग़ैरों के जड़े रहते हो.
*

बेचैन सा रहता भरी महफ़िल में,
है कौन छिपा बैठा, तड़पते दिल में,
रहती हैं ये आखें, मतलाशी किसकी ?
मंजिल है कहाँ, कौन निहाँ मंजिल में.
*

धरती के हैं, धरती की रज़ा रखते हैं,
हक धरती का हर रोज़ अदा करते हैं,
वह चाहने वाले हैं फ़लक के 'मुंकिर',
ऊपर की दुआओं में लगे रहते हैं.
*

तस्बीह, तसवीर, मसाजिद, तोगरा,
एक्सपोर्ट करे चीन, खरीदे मक्का,
सीने से लगाए हैं इन्हें हाजी जी,
बेदीनों के तिकड़म का यह दीनी तुक्का.
*

दंगों में शिकारी को लगा देते हो,
शैतां की तरह पाठ पढ़ा देते हो,
फुफकारते हो धर्म ओ मज़ाहिब के ज़हर,
तुम जलते हुए दीप बुझा देते हो.
*

Friday, August 24, 2012

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ

पीटते रहोगे ये लकीरें कब तक?
याद करोगे माज़ी की तीरें कब तक,
मुस्तकबिल पामाल किए हो यारो,
हर हर महादेव, तक्बीरें कब तक?
*

माद्दा परस्ती में है बिरझाई हुई,
नामूस ए खुदाई पे है ललचाई हुई,
इंसानी तरक्की से कहो जल्द मरे,
है आलम ए बाला से खबर ई हुई.
*

मोमिन ये भला क्या है, दहरया क्या है,
आला है भला कौन, ये अदना क्या है,
देखो कि मुआश का क्या है ज़रीआ?
जिस्मों में रवां खून का दरिया क्या है?
*

सब कुछ यहीं ज़ाहिर है, खुला देख रहे हो,
क़ुदरत लिए हाज़िर है, खुला देख रहे हो,
बातिन में छिपाए है, वह इल्मे- नाक़िस,
वह झूट में माहिर है खुला देख रहे हो,
*

छाई है घटाओं की बला, आ जाओ,
हल्का सा तबस्सुम ही सही, गा जाओ,
गर चाहो तो, हो जाओ ज़रा दरया दिल,
प्यासों पे घटाओं की तरह छा  जाओ.
*

Wednesday, August 22, 2012

रुबाइयाँ



रुबाइयाँ  

सर को ठंडा, पैर गरम रख भाई, 
हो पीठ कड़ी, पेट नरम रख भाई, 
सच्चाई भरे अच्छे करम हों तेरे, 
ढोंगी न बन काँटे धरम रख भाई. 

किस धुन से बजाय था मजीरा देखो, 
छल बल से चुने मोती ओ हीरा देखो, 
बनिए की समाधि है, कि इबरत का मुक़ाम, 
इस कब्र का बे कैफ़ जज़ीरा देखो. 

मातूब हुवा जाए बुढ़ापे में वजूद, 
लगत मिली बीवी से , न औलाद से सूद, 
संन्यास की ताक़त है, न अब भाए जुमूद, 
बूढ़े को सताए हैं, बचे हस्त ओ बूद. 

हाँ! जिहादी तालिबों को पामाल करो, 
इन जुनूनियों का बुरा हाल करो, 
बे कुसूर, बे नयाज़ पर आंच न आए, 
आग के हवाले न कोई माल करो. 

शीशे के मकानों में बसा है पच्छिम, 
मय नोश, गिज़ा ख़ोर, है पुर जोश मुहिम, 
सब लेता है मशरिक के गदा मग़ज़ोन से, 
उगते हैं जहाँ धर्म गुरु और आलिम. 

Thursday, August 16, 2012

Rubaaiyaan


रुबाइयाँ
  


शैतान मुबल्लिग़! अरे सबको बहका, 
जन्नत तू सजा, फिर आके दोज़ख दहका, 
फितरत की इनायत है भले 'मुंकिर' पर, 
इस फूल से कहता है कि नफरत महका. 


पसमांदा अक़वाम पे, क़ुरबान हूँ मै, 
मुस्लिम के लिए खासा परीशान हूँ मैं, 
पच्चीस हैं सौ में, इन्हें बेदार करो, 
सब से बड़ा हमदरदे-मुसलमान हूँ मैं. 
* 


दौलत से कबाड़ी की है, बोझिल ये हयात, 
हैं रोज़ सुकून के, न चैन की रात, 
बुझती ही नहीं प्यास कभी दौलत की, 
देते नहीं राहत इन्हें सदका ओ ज़कात. 


मस्जिद के ढहाने को विजय कहते हो, 
तुम दिल के दुखाने को विजय कहते हो, 
होती है विजय सरहदों पे, दुश्मन पर, 
सम्मान गंवाने को विजय कहते हो. 
हों फ़ेल मेरे ऐसे, मेरी नज़रें न झुकें, 
सब लोग हसें और क़दम मेरे रुकें, 
अफकार ओ अमल हैं लिए सर की बाज़ी. 
'मुंकिर' की नफ़स चलती रहे या कि रुके, 

  

Thursday, August 9, 2012

Rubaaiyan

रुबाइयाँ  


हलकी सी तजल्ली से हुआ परबत राख,
इंसानी बमों से हुई है बस्ती ख़ाक,
इन्सान ओ खुदा दोनों ही यकसाँ ठहरे,
शैतान गनीमत है रखे धरती पाक.
*
हम लाख संवारें , वह संवारता ही नहीं,
वह रस्म ओ रिवाजों से उबरता ही नहीं,
नादाँ है, समझता है दाना खुद को,
पस्ता क़दरें लिए, वह डरता ही नहीं. 
*
हों यार ज़िन्दगी के सभी कम सहिह, 
देते हैं ये इंसान को आराम सहिह 
है एक ही पैमाना, आईना सा,
औलादें सहिह हैं तो है अंजाम सहिह. 
*
मज़दूर थका मांदा है देखो तन से, 
वह बूढा मुफक्किर भी थका है मन से, 
थकना ही नजातों की है कुंजी मुंकिर, 
दौलत का पुजारी नहीं थकता धन से. 
हर सम्त सुनो बस कि सियासत के बोल, 
फुटते ही नहीं मुंह से सदाक़त के बोल , 
मजलूम ने पकड़ी रहे दहशत गर्दी, 
गर सुन जो सको सुन लो हकीकत के बोल. 

Friday, August 3, 2012

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ 

चेहरे पे क़र्ब है, लिए दिल में यास,
कैसे तुझे यह ज़िन्दगी, आएगी रास,
मुर्दा है, गया माजी, मुस्तक़बिल है क़यास,
है हाल ग़नीमत ये, भला क्यों है उदास.
*
हर सुब्ह को आकर ये रुला देता है, 
मज़्मूम बलाओं का पता देता है,
बेहतर है कि बेखबर रहें "मुनकिर",
अख़बार दिल ओ जान सुखा देता है.
*
तबअन हूँ मै आज़ाद नहीं क़ैद ओ बंद,
हैं शोखी ओ संजीदगी, दोनों ही पसंद,
दिल का मेरे, दर दोनों तरफ खुलता है,
है शर्त कि दस्तक का हो मेयार बुलंद. 
*
अल्लाह उन्हें रख्खे, उनकी क्या बात,
हर वक़्त रहा करते हैं सब से मुहतात,
खाते हैं छील छाल कर रसगुल्ले, 
पीते है उबाल कर मिला आबे-हयात.
*
फ़िरऔन मिटे, ज़ार ओ सिकंदर टूटे,
अँगरेज़ हटे नाज़ि ओ हिटलर टूटे,
इक आलमी गुंडा है उभर कर आया,
अल्लाह करे उसका भी ख़जर टूटे.
*