Saturday, July 28, 2012

रुबाइयाँ

रुबाइयाँ 


मज्मूम सियासत की फ़ज़ा है पूरी,
हमराह मुनाफ़िक़ हो नहीं मजबूरी, 
ढोता है गुनाहों को, उसे ढोने दो,
इतना ही बहुत है कि रहे कुछ दूरी.
*
मेहनत की कमाई   पे ही जीता है फ़कीर,
हर गाम कटोरे में भरे अपना ज़मीर,
फतवों की हुकूमत थी,था शाहों का जलाल,
बे खौफ़ खरी बात ही करता था कबीर.
*
फ़न को तौलते रहे, गारत थी फ़िक्र,
था मेराज पर उरूज़, नदारत थी फ़िक्र,
थी ग़ज़ल ब-अकद, समाअत क्वाँरी,
थी ज़बाँ ब वस्ल , ब इद्दत थी फ़िक्र. 
*
खुद मुझ से मेरा ज़र्फ़ जला जाता है,
कज़ोरियों पर हाथ मला जाता है,
दिल मेरा कभी मुझ से बग़ावत करके,
शैतान के क़ब्ज़े में चला जाता है.
*
कारूनी ख़ज़ाना है, हजारों के पास,
शद्दाद की जन्नत, बे शुमारों के पास,
जम्हूरी तबर्रुक की ये बरकत देखो,
खाने को नहीं है थके हारों के पास. 
*

Friday, July 20, 2012

रुबाइयाँ


जब तक नहीं जागोगे दलित और पिछडो,
आपस में लड़ोगे यूं ही शोषित बंदो,
ग़ालिब ही रहेंगे तुम पे ये मनुवादी,
ऐ अक्ल के अन्धो! और करम के फूटो !!
*
क्या शय है मनुवाद तेरा खोटा निजाम,
महफूज़ बरहमन के लिए हर इक जाम,
मैं ने है पढ़ा तेरी मनु स्मृति में,
सर शर्म से झुकता है तेरा पढ़ के पयाम.
*
मूसा सा अड़ा मैं तो क़बा खोल दिया, 
सदयों से पड़ी ज़िद की गिरह खोल दिया,
रेहल रख दिया, उसपे किताबे महशर,
पढने के लिए उसने नदा खोल दिया.
*
मिम्बर पे मदारी को अदा मिलती है,
मौज़ूअ पे मुक़र्रिर को सदा मिलती है,
रुतबा मेरा औरों से ज़रा हट के है,
हम पहुंचे हुवों को ही नदा मिलती है. 
 *
बस यूं ही ज़रा पूछ लिया क्यों है खड़ा?
दो चार अदद घूँसे मेरे मुंह जड़ा ,
आई हुई शामत थी , मज़ा चखना था,
सोए हुए कुत्ते पे मेरा पैर पड़ा. 
*

Thursday, July 12, 2012

रुबाइयाँ


रुबाइयाँ    

कुछ जीने उरूजों के हैं, लोगो चढ़ लो,
रह जाओगे पीछे, जरा आगे बढ़ लो, 
चश्मा है अकीदत का उतारो इसको , 
मत उलटी किताबें पढो, सीधी पढ़ लो.
*
है मुक्ति का अनुमान, जनम अच्छा है,
जन्नत के है इमकान, भरम अच्छा है, 
कहते हैं सभी मेरा धरम अच्छा है,
आमाल हैं अच्छे, न करम अच्छा है. 

बतलाई हुई राह, बसलना है तुम्हें,
सांचा है कदामत का, न ढलना है तुम्हें,
ये दुन्या बहुत आगे निकल जाएगी,
अब्हाम के आलम से निकलना है तुम्हें.
*
ज़ालिम के लिए है तेरी रस्सी ढीली,
मजलूम की चड्ढी रहे पीली  गीली,
औतार ओ पयम्बर को, दिखाए जलवा,
और हमको दिखाए, फ़क़त छत्री नीली.
*
है रीश रवाँ, शक्ल पे गेसू है रवां,
हँसते हैं परी ज़ाद सभी, तुम पे मियाँ, 
मसरूफ इबादत हो, मशक्क़त बईद,
करनी नहीं शादी तुम्हें? कैसे हो जवान.

Thursday, July 5, 2012

Rubaaiyan

रुबाइयाँ   


लगता है कि जैसे हो पराया ईमान, 
या आबा ओ अजदाद से पाया ईमान , 
या उसने डराया धमकाया इतना , 
वह खौफ के मारे ले आया ईमान. 
चाहे जिसे इज्ज़त दे, चाहे ज़िल्लत, 
चाहे जिसे ईमान दे, चाहे लानत, 
समझाने बुझाने की मशक्क़त क्यों है? 
जब खुद तेरे ताबे में है सारी हिकमत . 
अल्लाह ने बनाया है जहान ओ इन्सां, 
मशकूक ख़िरद है कि  कहूं न या हाँ, 
इक बात है, यक़ीनन सुनो या न सुनो, 
अल्लाह को बनाए है, कयासे- इन्सां. 
जब गुज़रे हवादिस तो तलाशे है दिमाग, 
तब मय की परी हमको दिखाती चराग़, 
रुक जाती है वजूद में बपा जंग, 
फूल बन कर खिल जाते हैं दिल के सब दाग 
औलादें बड़ी हो गईं, अब उंगली छुडाएं , 
हमने जो पढाया है इन्हें, वो हमको पढ़ें, 
हो जाएँ अलग इनकी नई दुनया से, 
माँ बाप बचा कर रख्खें, अपना खाएँ.