Sunday, April 8, 2012

ग़ज़ल___सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२




सब रवाँ मिर्रीख१ पर और आप का यह दरसे-दीन२ , 
कफिरीनो-मुशरिकीनो-मुनकिरीनो-मोमनीन3।






रौशनी कुछ सर पे कर लो, ताकि परछाईं का क़द,
छोटा हो जाए तुम्हें कुछ अपने क़द पर हो यकीन।






सीखते क्या हो इबादत और शरीअत के उसूल,
है खुदा तो चाहता होगा क़तारे गाफ़िलीन।






तलिबाने अफ्गनी और कार सेवक हैं अडे,
वह बजाएं, अपनी ढपली, यह बजाएं अपनी बीन। 






जाने कितने काम बाकी हैं जहाँ में और भी,
थोडी सी फुर्सत उसे देदे ख्याल नाजनीन।






साहबे ईमाँ तुम्हारे हक में है 'मुंकिर' की राह,
सैकडों सालों से गालिब हैं ये तुम पर फ़ास्क़ीन4 । 








१-मंगल ग्रह पर २-धर्म-शास्त्र दर्शन ३-शास्त्र-शीर्षक ४-झूठे

1 comment:

  1. vaah ....bahut behtreen ghazal Munkir saahab daad kabool kijiye.

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