सुकूने क़ल्ब को, दिल की हसीं परी तो मिले,
तेरे शऊर को इक हुस्ने दिलबरी तो मिले.
नफ़स नफ़स की बोखालत को ख़त्म कर देंगे,
तेरे निज़ाम में पाकीज़ा रहबरी तो मिले.
केनाआतें तेरी तुझ को सुकूं भी देदेंगी,
कि तुझ को सब्र बशकले कलंदरी तो मिले.
जेहाद अब नए मानो को ले के आई है.
तुम्हें ''सवाब ओ गनीमत'' से बे सरी तो मिले.
वहाँ पे ढूँढा तो बेहतर न कोई बरतर था,
फरेब खुर्दाए एहसास बरतरी तो मिले.
तू एक रोज़ बदल सकता है ज़माने को,
ख़याल को तेरे 'मुंकिर" सुखनवरी तो मिले.
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*बोखालत=कंजूसी *केनाआतें=संतोष *कलंदरी=मस्त-मौला *''सवाब ओ गनीमत'' =पुण्य एवं लूट-पाट*सुखनवरी=वाक्-पुटता.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteनफ़स नफ़स की बोखालत को ख़त्म कर देंगे,
ReplyDeleteतेरे निज़ाम में पाकीज़ा रहबरी तो मिले.....waah! bahut umda gazal hai....