Friday, December 23, 2011

गज़ल - - - यादे माज़ी को तो बेहतर है भुलाए रखिए


 
यादे माज़ी को तो बेहतर है भुलाए रखिए,
हाल शीशे का है, पत्थर से बचे रखिए।
 
दोस्ती, यारी, नज़रियात, मज़ाहिब, हालात,
ज़हन ओ दिल पे न बहानों को बिठाए रखिए।
 
मैं फ़िदा आप पे कैसे जो बराबर हैं सभी,
ऐ मसावती मुजाहिद! मुझे पाए रखिए।
 
सात पुश्तों से खजाना ये चला आया है,
सात पुश्तों के लिए माँ इसे ताए रखिए।
 
आबला पाई भुला बैठी है राहें सारी,
आप कुछ रोज़ चरागों को बुझाए रखिए।
 
सच की किरणों से जहाँ में लगे न आग कहीं,
आतिशे दिल अभी "मुंकिर" ये बुझाए रखिए।
*****

1 comment:

  1. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल ,आखिरी २ पंक्तियाँ बहुत ही शानदार रहीं ........

    ReplyDelete