Wednesday, December 14, 2011

ग़ज़ल - - - वोह जब करीब आए



 
वोह जब करीब आए ,
 
इक खौफ़ दिल पे छाए।


 
जब प्यार ही न पाए,
 
महफिल से लौट आए।


 
दिन रात गर सताए,
 
फ़िर किस तरह निंभाए?

 
इस दिल से निकली हाय!
 
अब तू रहे की जाए।


 
रातों की नींद खो दे,
 
गर दिन को न सताए।


 
ताक़त है यारो ताक़त,
 
गर सीधी रह पाए।
 


है बैर भी तअल्लुक़
 
दुश्मन को भूल जाए।

 
हो जा वही जो तू है,
 
होने दे हाय, हाय।
 


इकरार्यों का काटा,
 
"मुंकिर" के पास आए.

 
*****

2 comments:

  1. है बैर भी तअल्लुक़
     
    दुश्मन को भूल जाए।

     
    हो जा वही जो तू है,
     
    होने दे हाय, हाय.....वाह! बहुत खूब .....

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