है कैसी कशमकश ये, कैसा या वुस्वुसा है,
यकसूई चाहता है, दो पाट में फँसा है।
दिल जोई तेरी की थी, बस यूँ ही वह हँसा है,
दिलबर समझ के जिस को तू छूने में लसा है।
बकता है आसमा को, तक तक के मेरी सूरत,
पागल ने मेरा बातिन, किस जोर से कसा है।
सच बोलने के खातिर दो आँख ही बहुत थीं,
अल्फाज़ चुभ रहे हैं, आवाज़ ने डंसा है।
कैसी है सीना कूबी? भूले नहीं हो अब तक,
बहरों का फासला था, सदियों का हादसा है।
है वादियों में बस्ती, आबादी साहिलों पर,
देखो जुनून ए "मुंकिर" गिर्दाब में बसा है.
*****
*बातिन=अंतरात्मा *सीना कूबी=मातम *बहरों=समन्दरों *गिर्दाब=भंवर
No comments:
Post a Comment