साफ़ सुथरी सी काएनात मिले,
तंग जेहनो से कुछ नजात मिले।
संस्कारों में धर्म और मज़हब,
न विरासत में जात, पात मिले।
आप की मजलिसे मुक़द्दस1 में,
सिर्फ़ फितनों के कुछ नुक़ात2 मिले।
तुझ से मिल कर गुमान होता है,
बस की जैसे खुदा की ज़ात मिले।
उलझी गुत्थी है सांस की गर्दिश,
एक सुलझी हुई हयात मिले।
हर्फे-आखीर हैं तेरी बातें,
इस में ढूंडा कि कोई बात मिले।
१-सदभाव-सभा २-षड़यंत्र-सूत्र
अनोखेबहुत ही ढंग से लिखी सार्थक रचना /बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visit my blog http://prernaargal.blogspot.com/thanks/