Monday, July 4, 2011

नज़्म


नज़्म 

अपील


लिपटे- लिपटे सदियाँ गुज़रीं वहेम् की इन मीनारों से ,


मन्दिर ,मस्जिद ,गिरजा ,मठ और दरबारी दीवारों से ,


अन्याई उपदेशों से और कपट भरे उपचारों से ,


दोज़ख़, जन्नत की कल्पित, अंगारों, उपहारों से ।



बहुत अनोखा जीवन है ये, इन पर मत बरबाद करो ,


माज़ी के हैं मुर्दे ये सब , इनको मुर्दाबाद करो ,


इनका मंतर उनका छू, निज भाषा में अनुवाद करो ।


निजता का काबा काशी, निज चिंतन में आबाद करो.

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया गीतिका प्रस्तुत की है आपने तो!

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