ग़ज़ल
तू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक ख़ू है,
मैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.
वतो इज़ज़ो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख़ रू है, बेक़ुसूर ज़र्द रू है.
तेरा दीं सुना सुनाया, है मिला लिखा लिखाया,
मेरे ज़ेहन की इबारत, मेरी अपनी जुस्तुजू है.
मुझे खौफ है ख़ुदा का, न ही एहतियात ए शैतान,
नहीं खौफ दोज़खों का, न बेहिश्त आरज़ू है.
वोह नहीं पसंद करते, जो हैं सर्द मुल्क वाले,
तेरी जन्नतों के नीचे, वो जो बहती अब ए जू है.
तेरे ध्यान की ये डुबकी, है सरल बहुत ही जोगी ,
कि बहुत सी भंग पी लूँ ,तो ये पाऊँ तू ही तू है.
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* वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए=खुदा जिसको चाहे इज्ज़त दे,जिसको काहे जिल्लत.
गज़ल मे उर्दु शब्दों का अगर अर्थ भी लिखा होता तो सभी शे अर समझने मे आसानी होती मुझे उर्दु का अधिक ग्यान नहि है
ReplyDeleteजुनैद भाई सलाम! मैं कपिला जी की बातों से सहमति दर्ज़ करता हूँ आपकी ये ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है मगर मुझ जैसे नालायकों के लिए कम से कम जो उर्दू के शब्द बहुत ही कठिन है उनका तर्जुमा कर के बता देते तो ग़ज़ल बहुत दूर तक जाती!
ReplyDeleteतू है रुक्न अंजुमन का, तेरी अपनी एक खू है,
ReplyDeleteमैं अलग हूँ अंजुमन से, मेरा अपना रंग ओ बू है.
वतो इज़जो मन तोशाए, वतो ज़िल्लो मन तोशाए,
जो था शर पे, सुर्ख रू है, बेकुसूर ज़र्द रू है.
बहुत ख़ूब,वाक़ई आप अंजुमन से अलग हैं