ग़ज़ल
मुतालेआ करे चेहरों का, चश्मे नव ख़ेज़ी ,
छलक न जाए कहीं यह, शराब ए लब्रेजी.
हलाकतों पे है माइल, निज़ामे चंगेजी,
तरस न जाए कहीं, आरजू ए खूँ रेज़ी .
अगर है नर तो, बसद फ़िक्र शेर पैदा कर,
मिसाले गाव, बुज़, ओ ख़र है तेरी ज़र ख़ेज़ी.
तू अपनी मस्त ख़ेरामी पे, नाज़ करती फिर,
लुहा, लुहा से न डर, ए जबाने अंग्रेजी.
नए निज़ाम के जानिब क़दम उठा अपने,
ये खात्मुन की सदा छोड़, कर ज़रा तेज़ी .
बचेगी मिल्लत ख़ुद बीं, की आबरू 'मुंकिर',
अगर मंज़ूर हों मंसूर, शम्स ओ तबरेज़ी.
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*मुतलेआ= अद्ध्य्यन *निजामे=व्योवस्था *गाव, बुज़, खर=भेडें,बकरियां,गधे *उपजता *मिल्लत खुद बीन =इशारा वर्ग विशेष की ओर
वाह वाह!बहुत ख़ूब जुनैद भाई। उर्दु का इल्म भी खूब है आपको और बानगी तो क्या कहिये!
ReplyDeletebhaut hi khoob
ReplyDeleteurdu meri kamzor hai isiliye aapke diye hue meaning padhni padhi
aapke do sher bahut pasand aaye
मुतलेआ करे चेहरों का चश्मे नव खेजी,
छलक न जाए कहीं यह शराब ए लब्रेजी.
तू अपनी मस्त खरामी पे नाज़ करती फिर,
लुहा, लुहा से न डर, ए जबाने अंग्रेजी.
bahut achhe lage aapse urdu ke naye shabdon ko seekh sakungi